पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४१३

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४०० राष्ट्रीयता और समाजवाद भारत यदि क्रान्तिके मार्गसे च्युत न हुआ तो उसके लिए कई अवसर निकट भविष्यमे ही आयेंगे। इस समय हममे दृढ़ताकी आवश्यकता है और इस वातकी आवश्यकता है कि ८ अगस्त सन् ४२ के प्रस्तावको सदा हम ध्यानमें रखें। पेरिसका शान्ति-सम्मेलन सन् १९१८ के पेरिस-सम्मेलन पीर सन् १९४६ के पेरिस सम्मेलनमें एक बहुत बड़ा अन्तर है । शान्तिकी कुंजी जर्मनी है । जर्मनीके प्रश्नके निपटारेपर यूरोपका भाग्य निर्भर करता है । सन् १९१८ के सम्मेलनने सबसे पहले जर्मनीके प्रग्नका निपटारा किया। इस प्रश्नके सम्बन्धमे मित्रराष्ट्रोमे मौलिक मतभेद न था। सभी जर्मनीकी रण- शक्तिको फिरसे जिन्दा होने देना नहीं चाहते थे । मित्रराष्ट्रोके साम्राज्यवादको जर्मनीकी रणशक्तिसे खतरा था और वे इस खतरेको मदाके लिए खत्म करनेमे एकमत थे । इसलिए उन्होने सबसे पहले इस प्रश्नका फैसला किया । इस निश्चयसे सम्मेलनका काम मुगम हो गया और मित्रराष्ट्रोको जर्मनीके सहयोगी राष्ट्रोपर सन्धि लादने में कोई कठिनाई नही हुई। पर इस बार विजयी राष्ट्र जर्मनीके प्रश्नपर एकमत नहीं है और चूंकि वह इस प्रश्नपर यापसमे समझौता नहीं कर पाते, इसलिए वार-बार कान्फरेन्सके कामको रोक देना पड़ता है। किन्तु यदि मित्रराष्ट्र विना कुछ किये ही उट जायें तो भी अच्छा न होगा। मित्रराष्ट्र अपने मतभेदको दूर नहीं कर पाते, तथापि वै यह समझते है कि सम्मेलनके विफल होनेका बड़ा बुरा परिणाम होगा । यूरोपके निवासी गान्ति चाहते है और यदि सम्मेलनका अधिवेशन अनिश्चित तिथिके लिए टाल दिया तो लोग अधीर हो जायेंगे और मित्रराष्ट्रोंका प्रभाव क्षीण हो जायगा। इस अनिप्टसे अपनेको बचानेके लिए गीण प्रश्न वैदेशिक सचिवोकी कौंसिलके सिपूर्द कर दिये गये है । सन्धियोंके मसविदे तैयार करनेका काम इस कौसिलके सुपुर्द था। अब उसे अन्य प्रग्नोको भी अपने हाथमे लेना पड़ा है। इसके अलावा सम्मेलनके कार्यक्रममें तत्काल इटलीके उपनिवेशोके वटवारेका प्रश्न सम्मिलित नहीं है। इसे इमलिए छोड दिया गया है कि इसपर बहुत झगड़ा है । वैदेशिक सचिवोकी कीसिलने इस प्रश्नका निर्णय करनेका प्रयत्न किया था। कौसिल चाहती थी कि कुछ राष्ट्रोको इन उपनिवेशोका ट्रस्टी बना दिया जाय । किन्तु जव रूसने सिरेनेका ( Cyren- aica ) के लिए अपना दावा पेश किया तव मिस्टर वेविन इतने भयभीत हो गये कि उन्होंने कार्यक्रमसे इस प्रश्नको ही हटा दिया। वे अफ्रीकामे सोवियत रूसका प्रवेश सहन नहीं कर सकते। इस सवका परिणाम यह है कि मुख्य प्रश्नका विचार आगेके लिए टाल दिया गया है । उसके लिए एक दूसरा सम्मेलन बुलाना पड़ेगा। वर्तमान सम्मेलन गौण प्रश्नो और १. विश्वमिन्न' २६ नवम्बर, सन् १९४५ ई० ।