पेरिसका शान्ति-सम्मेलन ४०१ सन्धियोके मसविदोंपर विचार करेगा। जहाँ सन् १९१८ के सम्मेलनने सबसे पहले मुख्य प्रश्नका निर्णय किया था वहाँ वर्तमान सम्मेलन गौण प्रश्नोको पहले ले रहा है । वैदेशिक सचिवोको मसविदोके तैयार करनेमे ११ महीने लगे थे, इससे स्पष्ट है कि इनका काम कितना कठिन रहा होगा । अब यदि इनके आपसके समझौते सम्मेलनमे नहीं माने जाते तो फिर जिच उत्पन्न हो जायगी । यूरोपकी अस्त-व्यस्तताको दूर करनेमे जो विलम्ब हो रहा है, उससे यूरोपके लोग अधीर हो रहे है । यह लोकमतका ही प्रभाव था कि वैदेशिक सचिव किसी-न-किसी तरह मसविदेपर राजी हो सके थे। इटली, हंगरी, रूमानिया, बुलगारिया और फिनलैण्डके साथ जो सन्धियाँ होंगी उनके मसविदोपर सम्मेलन विचार करेगा । अन्य प्रश्नोपर विचार करनेके लिए दूसरे सम्मेलन बुलाये जायेंगे । सम्मेलनको वैदेशिक सचिवोकी कौसिलको फिरसे ये मसविदे सिपुर्द कर देने पडे थे ; और इस. समय न्यूयार्कमे कौसिलकी बैठक हो रही है। कौसिलके सामने मसविदोके अतिरिक्त अन्य प्रश्न भी है । मुख्य इनमे पाँच है-(१) ट्रीस्टके स्वतन्त्र प्रदेशके लिए विधान बनानेका प्रश्न, (२) डैन्यूब नदीमे यातायातकी सबको स्वतन्त्रता देनेका प्रश्न, (३) बालकनमे स्वच्छन्द व्यापारका प्रश्न, (४) हरजानेका प्रश्न और (५) ग्रीसकी सीमानोको निर्धारित करनेका प्रश्न । न्यूयार्कसे जो समाचार आ रहे है उनसे पता चलता है कि इनमेसे एक प्रश्नका भी निर्णय नही हो रहा है और किसीको नही मालूम कि इन प्रश्नोका समझौता कैसे हो सकेगा । आपसका मतभेद बढ़ता ही जाता है। सम्मेलनमे ही दो दल बन गये है । एकमे इगलैण्ड,अमेरिका और इनके साथी है । दूसरेमे रूस और उसके साथी है । पेरिस सम्मेलनने यह दिखा दिया है कि इन दलोकी नीतिमे मौलिक अन्तर है । सम्मेलनके बडे राष्ट्रोके प्रतिनिधियोको अपना मत स्पष्ट रूपसे प्रकट करनेके लिए बाध्य कर, सुलह और समझौतेके कामको और भी दुप्कर कर दिया गया है, क्योकि एक बार अपना निश्चित मत प्रकाश्य रूपसे दे चुकनेके पश्चात् उसमे हेर-फेर करना कठिन हो जाता है । ये दोनो दल एक दूसरेसे दूर होते जा रहे है । सन्धियोके मसविदोपर इन दलोका विचार हो रहा है, किन्तु यहाँ भी गाडी रुक गयी है । इटलीकी सरकारने मसविदेके सम्बन्धमे एक नोट तैयार किया है, जो १५ नवम्बरको कौसिलको दिया जायगा। कौसिलने जब ये मसविदे पहली वार तैयार किये थे तव चारो वैदेशिक सचिवोने एक प्रकारसे उनको सम्मेलनमे पास करानेका इकरार किया था और इस विचारसे उन्होने दो-तिहाई वोटके सिद्धान्तको स्वीकार किया था। यदि ऐसा निश्चय न होता और केवल बहुमतका सिद्धान्त लागू किया जाता और छोटे राज्य हिस्सा लेना चाहते तो ये मसविदे सम्मेलनमे पास नही हो सकते थे, क्योकि सम्मेलनमे सोवियत रूसका अल्पमत है । जब ये मसविदे विचारके लिए सम्मेलनके सामने आये तव मिस्टर वेविन उपस्थित नही थे। उनकी अनुपस्थितिमे आस्ट्रेलियाके प्रतिनिधि डा० ईवाट ( Evatt ) ने यह प्रस्ताव उपस्थित किया कि जिन सशोधनोको वहुमत प्राप्त हो उनका वही मूल्य ठहराया जाय जो उन संशोधनोका हो जिनको दो-तिहाई वोट मिले । इस वातको सोवियत प्रतिनिधि कैसे मान सकते थे, क्योकि उनकी ओरसे कौसिलमें समझौते हो चुके थे। वह दो-तिहाई
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४१४
दिखावट