जर्मन राजनीतिकी दिशा ४०७ चाहता है, यद्यपि उसकी नीतिका फल यह होगा कि तुर्की अपनी स्वतन्त्रता खो देगा। इधर इंगलैण्ड रूसको डार्डनेल्ससे अलग रखना चाहता है । खतरेके जो प्रदेश है, उनमें छीना-झपटी चल रही है। हमारी रायमे प्रश्नका हल यह है कि इन सव स्थानोको किसी एकका प्रभाव क्षेत्र नहीं बनने देना चाहिये । किन्तु इनपर अन्तर्राष्ट्रीय अधिकार होना चाहिये । इस नीतिको समान रूपसे वर्तना चाहिये । तेलके चश्मोके लिए जो होड है उसे रोकना चाहिये । तेलके चश्मे उस देशकी मिलकियत हो जहाँ वे पाये जाते हो, किन्तु सव राष्ट्रोको अपनी-अपनी आवश्यकताके अनुसार उचित दाम देनेपर उसमे हिस्सा मिलना चाहिये और इस विपयके सारे अधिकार एक अन्तर्राष्ट्रीय सस्थाके हाथमे होने चाहिये। यूरोपके पुनर्निर्माणके लिए भी सबकी रायसे योजनाएँ बननी चाहिये । पेरिस-सम्मेलन सफल होता नही दीखता । खिचाव बढता जाता है । वार-बार सम्मेलनको मुलतवी करना पडता है या झगडेके कामोको कौसिलके सिपुर्द करना पडता है । मालूम होता है कई सम्मेलन करने पडेगे। समझौतेका कोई आधार नजर नही आता । सहयोग तभी सम्भव है जब कोई ऐसा उद्देश्य हो, जिसके अधीन अन्य सव उद्देश्य हो सके । कोई ऐसे सिद्धान्त सबको मान्य नहीं है, जिनके आधारपर कुछ निश्चय किये जा सके। कमसे कम इतना तो हो कि सवाल अलग-अलग न लिये जायँ । सव सवालोको एक साथ लेना चाहिये, जिसमे एक-सा फैसला हो सके । छोटे राष्ट्रोके अधिकारका प्रश्न भी विचार- णीय है। इस समय जो कुछ निर्णय होते है उन्हे वैदेशिक सचिव कर लेते है। उनकी स्वीकृति सम्मेलनसे ली जाती है । जब यह हाल है तो लोकमतको कौन पूछता है ? छोटे राष्ट्र स्वतन्त्र नही है । वे किसी-न-किसी महाराष्ट्रके साथ है । सारा ढग लोकतन्त्रके विरुद्ध है । इस ढंगको बदलनेकी जरूरत है । यदि पहले सिद्धान्त स्थिर कर लिये जाय और उनके अनुसार पक्षपातरहित हो काम किया जाय तो सफलताकी आणा हो सकती है । जर्मन राजनीतिकी दिशा' जर्मनीके उस भागमे जो सोवियत रूसके अधिकारमे है, रूसियोके प्रभावसे एक 'सोशलिस्ट युनिटी पार्टी' स्थापित हुई है। इसका अाधार 'सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी' की एकता है। कहा जाता है कि वास्तवमे इन दलोमे एकता नही हुई है, किन्तु रूसी अधिकारोके दबावमे आकर सोशल डेमोक्रेट इस नयी पार्टीमे सम्मिलित होनेके लिए बाध्य हुए है । डाक्टर के० शुमाखेर ( Dr K. Schumacher ) जो जर्मनीके पश्चिमी भागोके सोशल डेमोक्रेटिक सस्थाअोके नेता है, इस एकताका विरोध कर रहे है । उन्होने हनोवर और फ्रैंकफुर्टमे अपने दलके अधिकारियोके सम्मेलन किये थे; जहाँ इस एकताके विरोधमे प्रस्ताव पास किये गये है। उनका कहना है कि समस्त जर्मनीकी पार्टी काग्रेसको ही एकताके प्रश्नका निर्णय करनेका अधिकार है । उनका आग्रह है कि १. 'जनवाणी' जनवरी १९४७ ई०
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