पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४३४

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एशियाई सम्मेलन ४२१ उनको पहली बार वरावरीके दर्जेपर दूसरे प्रतिनिधियोसे वातचीत करना पड़ता और उनको यह अनुभव हो जाता कि नवीन एशियामे साम्राज्यवाद और अधिनायकत्वको स्थान नही है। एशियाके विविध देशोंके प्रतिनिधियोके अतिरिक्त आस्ट्रेलियासे तथा इंगलैण्डसे 'इन्स्टीट्यूट अाव् इण्टरनेशनल अफेयर्स' ( 'Institute of International Affairs' ) की ओरसे तथा न्यूयार्कके 'इन्स्टीट्यूट आव् पैसफिक रिलेशन्स' ( 'Insti- tute of Pacific Relations' ) की ओरसे दर्शक आये थे। पहले दिन सम्मेलनका खुला इजलास वड़े समारोहके साथ हुया । श्रीमती सरोजिनी नायडूने सभानेत्रीका आसन ग्रहण किया तथापं० जवाहरलाल नेहरूने सम्मेलनका उद्घाटन किया। प्रत्येक देशके प्रतिनिधमण्डलके नेताने अपने-अपने देशकी ओरसे सन्देश पढा, जिसमे सम्मेलनका स्वागत किया गया था । खुले इजलासके समाप्त होनेपर निम्नलिखित प्रश्नोपर विचार करने के लिए विविध कमेटियोका संगठन किया गया- १. एशियाके राष्ट्रीय आन्दोलन । २. जातिगत ( racial ) समस्याएँ, विशेषरूपसे जातीय संघर्षका प्रश्न । ३. प्रवासकी समस्या और प्रवासियोके साथ व्यवहार और उनकी स्थितिका प्रश्न । ४. औपनिवेशिक अर्थनीतिसे राष्ट्रीय अर्थनीतिमे सक्रमण । ५. एशियाके देशोका औद्योगिक विकास और कृपिका पुननिर्माण । ६. एशियाके मजदूरोकी समस्या और सामाजिक सेवायोकी व्यवस्था । ७. एशियाकी सास्कृतिक समस्याएँ विशेष रूपसे शिक्षा, कला, स्थापत्य, वैज्ञानिक अनुसन्धान और साहित्यकी समस्या । ८. स्त्रियोका समाजमे स्थान और एशियाके स्त्री-आन्दोलन । इन विषयोपर विविध उपसमितियोमे विचार किया गया और निवन्ध भी पढ़े गये । एशियाके विविध देशोके स्वातन्त्र्य-यान्दोलनके इतिहासपर प्रकाश डाला गया । यह स्पष्ट है कि इस विषयमे कुछ अधिक नही किया जा सकता था। एक तो सम्मेलनका स्वरूप राजनीतिक नही था और उसने राजनीतिक प्रश्नोको छोड़ देनेका निश्चय किया था । दूसरे अाजकी परिस्थितिमे सहानुभूति प्रदर्शित करनेके अतिरिक्त कुछ विशेप किया नहीं जा सकता । एशियावासियोमे आज जो अपूर्ण जागृति देख पड़ रही है उसके कारण तथा मुख्यत इस कारण कि यूरोपके साम्राज्यवादने ही सकल एशियाको अभिमत और त्रस्त किया था एशियाके देशोमे परस्पर सहानुभूति पायी जाती है। सम्मेलनने परस्पर सांस्कृतिक और आर्थिक सम्बन्धको सुदृढ करनेका निश्चय कर उस सहयोग और वास्तविक सहानुभूतिकी नीव डाली है, जिसके आधारपर आगे चलकर राजनीतिक सम्बन्ध भी कायम होगे। जातिगत संघर्प ( racial conflict ) का प्रश्न भी हमारे लिए कम महत्त्वका नहीं है। फिलिस्तीन तथा पूर्वी एशियाके देशोंमे इस प्रश्नका निपटारा शीघ्र हो जाना चाहिये ।