पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४३५

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४२२ राष्ट्रीयता और समाजवाद फिलिस्तीनके अरब यहूदियोके प्रवासको कुदृष्टिसे देखते है, क्योंकि उनका ख्याल है कि फिलिस्तीनमे यहूदी राज्य कायम करनेका यह एक सगठित प्रयत्न है । तुर्कीने इस प्रश्नको सन् १९२४ मे ही हल कर लिया था। पूर्वी एशियाके देशोमें हिन्दुस्तान और चीनके लोग वडे पैमानेपर बस गये है, प्राचीन कालमे इन देशोका सास्कृतिक सम्बन्ध था, किन्तु पिछले १५० वर्षोंमे जो प्रवास हुअा है, वह प्रधानतः आर्थिक कारणोसे अपढ मजदूरोका हुआ है । यूरोपीय सत्ताने अधीन देशोके आर्थिक साधनोका अपने लाभके लिए उपयोग करनेकी इच्छासे इस प्रस्तावका सदा स्वागत किया है और उसे प्रोत्साहन दिया है। किन्तु आज जब ये देश स्वतन्त्र हो रहे है, ये प्रवासी वहाँके निवासियोद्वारा अच्छी दृष्टिसे नही देखे जाते । यह समझा जाता है कि ये वहाँके अधिवासियोकी आर्थिक उन्नतिमे वाधक है । इस प्रकार जातिगत संघर्ष और विरोध उत्पन्न होता है और इसके मूलमें आर्थिक कारण है । पुन. इन प्रवासियोकी आँखे सदा अपने देशकी ओर लगी रहती है और वे उससे अपने अधिकारोकी रक्षा चाहते है। उचित तो यह है कि वे जिस देशमे आकर बस गये है, उसे ही अपना देश समझे और वहाँकी गवर्नमेण्टसे ही न्यायकी माँग करें। प्रवासियोकी मनोवृत्ति भी अधिकारियोंके विरोधको बढ़ाती है । आज हम देखते है कि यह जातिगत समस्या बर्मा, लका,मलय, श्याम और हिन्द-चीनमे उग्र रूपमे पायी जाती है । इन देशोके अधिवासी हिन्दुस्तानी और चीनियोको बराबरीके अधिकार नहीं देना चाहते और उनपर कई प्रकारके नियन्त्रण लगाते है । वैज्ञानिक दृष्टिसे जाति-विशुद्धि नामकी कोई वस्तु नही है । सदासे जातियोंका सम्मिश्रण होता आया है । यह भी धारणा मिय्या है कि एक जाति विशिष्ट है और दूसरी निकृष्ट । जो जातिगत विरोध इस समय पाया जाता है, उसका कारण आर्थिक है। किन्तु यह भी सत्य है कि एक जातिके लोग दूसरी जातिके लोगोको अपनेसे निकृष्ट मानते है। जातियोके पारस्परिक सम्बन्धका इतिहास जाननेसे तथा निकट सम्पर्कमे आनेसे यह प्रज्ञान दूर हो जायगा । हमकोयह भी स्वीकार करना चाहिये कि किसी देशके निवासियों को प्रवास कर दूसरे देशका आर्थिक शोषण करनेका अधिकार नही है। सम्मेलनका सुझाव है कि सब नागरिकोको कानूनकी दृष्टिमे समान अधिकार मिलने चाहिये, उनको धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिये, समाजमे किसी जातीय समूहके साथ भेद-भाव नही होना चाहिये तथा उन सव विदेशियोके साथ समानताका व्यवहार होना चाहिये जो देशमे आकर बस गये है । एक प्रस्ताव यह भी किया गया था कि इन सुझावोकी सिफारिश इन देशोकी गवर्नमेण्टको करनी चाहिये और उनसे अनुरोध करना चाहिये कि वे उन्हे कार्यान्वित करे किन्तु सम्मेलनका निर्णय किसी विशेष प्रस्तावके स्वीकार करनेके विरुद्ध था। प्रवासके सम्बन्धमे उपसमितिमे मतभेद था। यद्यपि यह सवको स्वीकार था कि प्रत्येक देशको प्रवासको सीमित करनेका अधिकार है, तथापि सवका समान रूपसे यह मत था कि प्रवास को विलकुल बन्द कर देनेसे आपसका विद्वेप वढेगा। यह भी साधारणत. सवको स्वीकृत था कि एक समयमे कोई व्यक्ति एक ही देशका नागरिक हो सकता है और प्रवासी नागरिक बन जानेपर अपनी मातृभूमिसे रक्षाकी याचना नही कर सकता है ।