पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४३६

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४२३ एशियाई सम्मेलन एक दूसरे महत्त्वका प्रश्न जिसपर उप समितिमे विचार किया गया अर्थनीतिसे सम्बन्ध रखता है। एशियाके विविध देशोमे व्यापारका सम्बन्ध कैसे स्थापित किया जाय ? क्या एशिया आर्थिक दृष्टिसे इकाई माना जा सकता है ? औपनिवेशिक अर्थनीतिसे राष्ट्रीय नीतिमे सक्रमण किस प्रकार हो ? देशके आर्थिक विकासमे विदेशी पूंजीका क्या स्थान होना चाहिये ? इत्यादि प्रश्नोपर उपसमितिने विचार किया। उपसमितिकी रायमे कुछ विशेष शर्तोंके साथ ही विदेशी पूँजीका उपयोग हो सकता है । मुनाफेको सीमित करना तथा गुजारे लायक उचित मजदूरी दिलाना आवश्यक है । उपसमिति रिपोर्टका यह भी कहना है कि विदेशियोके राजनीतिक प्रभावसे सर्वथा स्वतन्त्र होनेपर ही संक्रमण उचित रूपसे हो सकता है । राष्ट्रीय अर्थनीतिकी प्रतिष्ठाके लिए कृषिकी ढंगसे उन्नति करना, गृह-उद्योगोको वैज्ञानिक ढगसे संगठित करना, सहयोग- विकास करना, विदेशोसे व्यापार स्थापित करना तथा माल ले जानेके लिए जहाजोका प्रवन्ध करना, गुजारे लायक उचित मजदूरी निश्चित करना, उद्योग-व्यवसायकी उन्नति करना इत्यादि कार्य आवश्यक है। इस कार्यको सम्पन्न करने के लिए यह भी आवश्यक समझा गया है कि एशियाके विविध देश आर्थिक नीतिका विकास मिल-जुलकर करे और एक आवाजसे अन्तर्राष्ट्रीय सस्थानोके सामने उसका समर्थन करे । यह स्वीकार किया गया है कि एशियामे खेती बहुत पिछडी हुई है । कई देशोमें युद्धकालमे जो वरवादी हुई है, उसके कारण नयी समस्याएँ उठ खडी हुई है । उपसमितिकी रायमे खेतके पैदावारको बढाना अति आवश्यक है और इसके लिए नवीन उपायो और साधनोसे काम लेना जरूरी है। अच्छा बीज, अच्छी खाद और अच्छे अौजारका उपयोग अत्यन्त आवश्यक है । वह भूमि जो ऊसर-वजर पडी है या किसी कारण खेतीके काममे नही आ रही है, खेतीके उपयुक्त बनाना चाहिये । कृषिकी उन्नतिमे राज्यका विशेष कर्तव्य है। इसके लिए गरीब किसानोकी पूंजीसे सहायता करनी होगी। भारतका व्यापार इस समय विदेशियोके हाथमे है । इस अप्राकृतिक अवस्थाको बदलना होगा। किसानोकी अवस्थामें सुधार होना भी आवश्यक है। पैदावारकी विक्रीका ऐसा प्रवन्ध होना चाहिये, जिसमे पूरा मुनाफा किसानोको ही मिले । खेत-मजदूरोको भी जमीन दिलानेको व्यवस्था होनी चाहिये । इस सम्बन्ध मे फिलिस्तीनकी सामूहिक खेती जो यहूदियोद्वारा कम्यूनके अधीन होती है तथा मध्य एशियाके सोवियत रिपब्लिकोकी सामूहिक खेतीकी प्रगसा रिपोर्टमे की गयी है । भूमि-सम्बन्धी मौलिक सुधारोके विना खेतीकी उन्नति नही हो सकती यह बात रिपोर्टमे स्वीकार की गयी है । प्रौद्योगिक विकासके सम्वन्धमे एशियाकी वर्तमान स्थितिका विचार किया गया । उद्योगका विकास एशियामे वहुत कम हुआ है और अवतक ये देश मुख्यतया कच्चा माल वाहर भेजते रहे है और तैयार माल वाहरसे मँगाते रहे है। इस कारण इसकी अर्थनीति अबतक औपनिवेशिक रही है । एशियाकी स्वतन्त्रताकी रक्षाकी दृप्टिसे भी इस स्थितिको वदलना है । उसी मात्रामे हम अपनी स्वतन्त्रताकी रक्षा करनेमे समर्थ होगे जिस मात्रामे हम अपना औद्योगिक विकास कर सकते है । पूँजीका प्रश्न तथा सामान विशेष महत्त्वका है । ऐसा प्रतीत होता है कि