पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४६१

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४४८ राष्ट्रीयता और समाजवाद सर्वसाधारणका प्रादर्श इसके विपरीत कुछ और ही है । यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो यही सत्य प्रतीत होगा कि साधारण जन बहुधा शान्तिपूर्वक सुख भोगते हुए अपना जीवन व्यतीत करना चाहते हैं । उनको राज्य-विस्तारसे क्या प्रयोजन ? उनको दूसरोंकी स्वतन्त्रता स्वार्थ के लिए छीन लेनेसे क्या लाभ? हाँ, यदि कोई राष्ट्र उनपर आक्रमण करे तो अवश्य आत्म-रक्षाके लिए वह प्रतिकार करेगे, परन्तु अन्यथा नही। जो लोग श्रमजीवी है वह केवल यही.चाहते है कि निर्विघ्न होकर अपने श्रमके फलोका उपभोग करे और एक दूसरेकी सहायता करते हुए समाजकी उन्नति करे । सर्वसाधारणमे से जो स्टेटसे सम्बद्ध होते है केवल वही जन-समुदायके आदर्शका विरोध करते है और जिन्होने स्टेटद्वारा शिक्षा प्राप्त की है वही स्टेटके उपदेशकका कार्य करते है और स्टेटके विचारोका सर्वसाधारणमे प्रचार करते है । इस आन्दोलनका प्रभाव विणेपकर हमारे सुशिक्षित भाइयोपर पडता है जो शारीरिक परिश्रम नही कर सकते है अथवा जोधन तथा सम्मानके लोभसे स्टेटकी सेवा करना स्वीकार करते है । परन्तु हमारे किसान तथा मजदूर ऐसे विचारोसे बहुत कम प्रभावित होते है । स्टेट अपने आदेशकी सफलताके लिए निरन्तर चेप्टा करता है और एक सुसगठित सस्था होनेके कारण सर्वसाधारणके लिए इसका विरोध करना दुष्कर हो जाता है । सर्वसाधारण अपनी शक्तियोको वहुधा संगठित नही करते । यही कारण है कि स्टेट अपने लक्ष्यकी ओर बढ़े चले जाते है, परन्तु सर्वसाधारण उदासीनता तथा निर्वलताके कारण अपने प्रादर्शकी रक्षा करनेमे असफल रहते है । कुछ कालसे सर्वसाधारणका प्रात्म- ज्ञान वढता जाता है और वह अपनी उदासीनताका परित्याग कर अपनी शक्तियोका सगठन करने लग गये है । कितने ही विद्वान प्राशा करते है कि एक दिन अवश्य आवेगा कि जब किसी स्टेटका अस्तित्व न रह जायगा और मनुष्य विना किसी शासनके प्रेमपूर्वक एक दूसरेके साथ व्यवहार करेगे और परस्पर सहानुभूति दिखाते हुए आत्मिक तथा सामाजिके उन्नति करेंगे। आदर्शोमे भेद होनेके कारण ही स्टेट केवल उसी प्रकारकी वीरताका आदर तथा सम्मान करता है जिससे वह अपने आदर्शकी पुष्टि समझता है । राज्य-विस्तारके लिए स्टेटद्वारा रचे हुए युद्धमे जो सिपाही पराक्रम दिखाता है स्टेट उसका आदर करता है, परन्तु जो व्यक्ति अपने प्राणोकी कुछ भी परवाह न कर किसी डूबते हुएको बचानेके लिए समुद्रमे कूद पड़ता है और उसके प्राणोकी रक्षा करता है स्टेट उसकी वीरताकी उपेक्षा करता है । सिपाही युद्धमे यदि पराक्रम न दिखलावे और प्रणपणसे युद्ध न करे तो स्टेटकी बड़ी क्षति हो और उसका उद्देश्य सफल न हो परन्तु एक साधारण व्यक्तिकी रक्षा करनेवालेसे स्टेटको अपने उद्देश्यमे कुछ भी सहायता नही मिलती। हमारे पढे-लिखे लोग भी जिनकी शिक्षा स्टेटद्वारा हुई है वहुधा स्टेटकी नाई पहले प्रकारकी वीरताका आदर तथा दूसरे प्रकारकी वीरताकी उपेक्षा करते है । हमारे अशिक्षित भाई आये दिन कितने ही वीरोचित कार्य किया करते है जो हमारे कानोतक भी नहीं पहुंचते और यदि पहुँचते भी है तो उनका उल्लेख समाचार-पत्नो तथा ग्रन्थोमे बहुत कम हुआ करता है । परन्तु यदि कोई सिपाही स्टेटके लिए युद्धमें वीरताके साथ लड़ता है तो उसके पराक्रमका उल्लेख स्वर्णाक्षरोमे होता है और