पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४६७

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४५४ राष्ट्रीयता और समाजवाद कुछ करना चाहिये । इसलिए इंगलैण्डमे पार्लमेण्टके कई सदस्योने प्रेसकी जांच करनेके लिए एक कमीशनकी मांग की है। कोई भी समाजवादी यह नहीं चाहेगा कि राज्यका प्रेसपर नियन्त्रण हो । किन्तु अाजकी वहाँकी अवस्था भयावह है । जबतक इसमे परिवर्तन नही होता तवतक लोकतन्त्र खतरेमे है । हमारी समस्या यह है कि हम किस प्रकार प्रेसकी स्वतन्त्रताको सुरक्षित रखते हुए समाचारपत्रोंका सदुपयोग जनताकी शिक्षाके लिए कर सकते है । हमको प्रेसको जनताकी शिक्षाके लिए उत्तरदायी बनाना है और साथ-साथ प्रेसकी स्वतन्त्रताकी भी रक्षा करनी है । हमको मनुप्यके उत्तम 'स्व' को जगाना है और जो व्यापारी पत्र मनुष्यकी अधम मनोवृत्तिको जागरूक करते है और उसकी कुरुचिको व्यापारके लाभके लिए उत्तेजित करते है, उनको हमे रोकना है । हमको इसकी भी व्यवस्था करनी है कि जनताके सामने उभयपक्ष उपस्थित किया जा सके जिसमे वह विचार कर उचित निर्णयपर पहुँच सके, ऐसा नही कि केवल पूंजीपतिका ही पक्ष उनके सम्मुख हो । लार्ड नार्थक्लिफने इंगलैण्डके पन-जगत्मे क्रान्ति उपस्थित कर दी थी, किन्तु इधर सर्वसाधारणके लिए शिक्षाका मापदण्ड ऊँचा कर देनेसे तथा नागरिको और सैनिकोमे प्रौढ शिक्षाको व्यवस्था कर देनेसे एक नवीन युगका प्रारम्भ हो रहा है, जहाँ जनतामें उच्च शिक्षाके प्रचारमे वृद्धि होनेसे पाठकोका एक नया वर्ग उत्पन्न हो गया है, जो केवल समाचारोसे सन्तुष्ट नहीं है और जिसे सनसनीदार खवरे पसन्द नही है । वह देश-विदेशकी समस्याग्रो और उलझनोको समझना चाहता है। उसमे छिछलापन नही है । वह युगकी समस्याअोका गम्भीर अध्ययन करना चाहता है । वह ऐसे ही पत्न पसन्द करता है जो इस कार्यमे उसकी सहायता करनेकी क्षमता रखते हो। किन्तु अभी व्यापारी पत्नोका प्रभाव कम नही हुआ है और नये प्रकारके पत्रोको प्रतिष्ठा प्राप्त करनेमे अभी समय लगेगा। हमारे देशमे नार्थक्लिफके युगकी अभी सूचना ही मिली है, किन्तु प्राथमिक शिक्षाके प्रसारके साथ-साथ हमारे यहाँ भी वही अवस्था उत्पन्न हो जायगी जो इंगलैण्डमे उन्नीसवी शताव्दीके अन्तमे हुई थी । वहाँकी अवस्था नित्य विगड़ती जाती है और आज इंगलैण्ड- निवासी इस विपयमे चिन्ता प्रकट कर रहे है। क्या हमारा यह कर्त्तव्य नही है कि हम इगलैण्डके अनुभवसे शिक्षा ले और अपने समाजको उन बुराइयोंसे बचानेका आजसे ही प्रयत्न करे? केवल प्राथमिक शिक्षासे हमारा काम नही चलेगा। मौलिक शिक्षा ( Basic Education ) की पद्धतिको कार्यान्वित करनेसे ही हम मतदातासोको इस योग्य वना सकते है कि वे प्रश्नोपर सूक्ष्म विचार करना सीखे । सच्ची लोकतन्त्रकी स्थापनाके लिए शिक्षित और सतत् जागरूक जनताका होना आवश्यक है और यह उद्देश्य केवल लिखना-पढना सिखा देनेसे नही होगा । जनताके सुसंस्कृत बनानेका महान् उद्योग ही लोकतन्त्रकी स्थापनामे सच्चा सहायक हो सकता है । अभी हमको बहुमतका आदर करना सीखना है और सीखना है शान्तिके साथ वाद-विवाद करना और अपने निर्णयोमे तर्क और युक्तिको ऊँचा स्थान देना । जो राष्ट्र जात-पातके भेदोंसे जर्जरित हो रहा है और जिसका समाज ऊँच-नीचके भेदभावपर आश्रित है, उसके लिए जो कार्यक्रम बनाया जाय उसमे शिक्षाको