पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४६९

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४५६ राष्ट्रीयता और समाजवाद आर्थिक जीवनका संगठन करना प्रत्येक राज्यके लिए प्रायः अनिवार्य-सा हो रहा है । इस अर्थनीतिका परिणाम क्या होता है, इसको भी इन विचारकोने रूस तथा जर्मनीमे देखा है । उनका कहना है कि इस प्रकारकी अर्थनीतिका एक परिणाम यह होता है कि नौकरशाही- का वाहुल्य हो जाता है तथा सामाजिक जीवनके प्रत्येक विभागपर राज्यका नियन्त्रण हो जाता है, जो लोकतन्त्र तथा मानव-स्वतन्त्रताके लिए अत्यन्त भयावह है । इन विचारकोंका कहना है कि यह अर्थनीति ही अधिनायकत्वको जन्म देती है। आजका युग बहुजनका युग है । इस युगमे समाज प्रसुप्त और निश्चेप्ट नही है । पूंजीवादने जनताके महत्त्वको वढा दिया है । पूंजीवादको अपने मुनाफेके लिए असंख्य मजदूरोको कल-कारखानोमे लगाना पड़ा। धीरे-धीरे यह मजदूर अपनी संस्थानोमे संगठित होने लगे तथा अपनी मांगोको पूरा करनेके लिए हड़ताल करने लगे। धीरे-धीरे क्रान्तिकारी बुद्धिजीवियोने उनको समाजवादकी विचारधारा दी और मजदूर वर्गको ही इस नयी विचार-पद्धतिकी मूलभित्ति बनायी । पूँजीवादके गर्भसे एक नये समाजकी सृष्टि होने लगी। मजदूर-समाज मजबूत होने लगा। इसमे मजदूरोकी पहली सफल क्रान्ति हुई और इंगलैण्डमे मजदूरोका राज्य स्थापित हुआ । इन विशेष कारणोसे यह स्पष्ट इङ्गित होता है कि एक युगकी परिसमाप्ति और दूसरे युगका उपक्रम हो रहा है । अत. यह शती समान्य जनकी ती कहलाती है । आज वहुजनके हितोकी उपेक्षा नहीं की जा सकती । आज जो कोई शासक हो उसे जनताके नामपर ही शासन करना होगा। ऐसी परिस्थितिमे जनताके विचारोसे अवगत रहना तथा उनका नियन्त्रण करना राज्यके लिए आवश्यक है । इसलिए जिस तरह कारखानोमे बड़े पैमानेपर विविध वस्तुएँ तैयार होती है, उसी तरह राज्यकी अोरसे विचार भी तैयार किये जाते है । ब्राडकास्टिगपर राज्यका नियन्त्रण इसीलिए होता है । आज सामाजिक नियन्त्रणके लिए नये उपकरणोका प्रयोग करनेके लिए राज्य वाध्य है। विज्ञानने इन नये उपकरणों और साधनोको हमारे लिए उपलब्ध किया है। कई सामाजिक प्रणालियाँ प्रचलित हो गयी है । यदि लोक- कल्याणके लिए इनका उपयोग किया जाय, तो समाजका मगल हो सकता है। किन्तु यह भी स्पष्ट है कि यह राज्यमे असीम शक्तिको केन्द्रित कर देती है और यदि इनका दुरुपयोग हो तो अमंगल ही अमंगल है। उदाहरणके लिए रण-पद्धतिमे क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गये है। नूतन अस्त्रोंका आविष्कार हो गया है और नर-संहार अत्यन्त सुलभ हो गया है । इन आविष्कारोंने मुट्ठीभर लोगोके हाथमे शक्ति केन्द्रित कर दी है । जहाँ यह विदेशी आक्रमणसे देशकी रक्षा करनेमे अधिक समर्थ है, वहाँ इन्ही साधनोसे जनताके विप्लवको अधिक सुगमतासे दवा सकते है। कुछ विचारकोंका कहना है कि यह सामाजिक प्रणालियाँ स्वतः न कल्याण करनेवाली है और न अमंगल करनेवाली है । जिनके हाथोंमे इन नवीन अस्त्रोका प्रयोग है, उनकी इच्छा- पर यह निर्भर करता है कि इनका सदुपयोग होगा अथवा दुरुपयोग । किन्तु यह निश्चित नही है कि शासकोकी इच्छा कैसी होगी। इस अनिश्चितताके कारण वह इन सामाजिक