फासिज्मका वास्तविक रूप ४५६ विद्याचरण-सम्पन्न व्यक्ति ही समाजका सच्चा नेतृत्व कर सकते है । सामाजिक प्रणालियाँ स्वतः कुछ नही कर सकती, जबतक उनको कार्यान्वित करनेवाले सर्व-भूत हित रत नही होते, सामाजिक परिस्थितिके अनुक्ल प्राणी होनेसे ऐसे व्यक्तियोंकी समाजमे वृद्धि होगी। जब समाजिक स्थिति जटिल होती है तभी उसको सुलझानेके लिए महापुरुष जन्म लेते हैं और प्रार्त-जनता उनका स्वागत करनेके लिए तैयार होती है । आजका विचार-विमर्श तथा स्थितिको सुधारनेके लिए बताये गये अनेक सुझाव इस बातको दिखाते है कि समाजके हृदयका मन्थन हो रहा है । समस्या उत्पन्न हो गयी है, उसका हल भी हमको प्राप्त होगा। हम आज अन्धकारमे टटोल रहे है किन्तु प्रकाश भी अवश्य दिखायी देगा और समाजका अन्तमे निस्तार होगा। किन्तु आजतक जो उन्नति हुई है, उसको ताकपर रखकर नहीं, वरंच उसका उत्तम उपयोग करके ही हमारा अभीष्ट सिद्ध होगा।" फासिज्मका वास्तविक रूप पूँजीवादके ह्रासका युग पूंजीवादके लिए ह्रास और अवनतिका युग है । यो तो पूंजी-प्रथामे संकटका काल समय-समयपर बराबर उपस्थित होता आया है, क्योकि ऐसा होना पूंजी-प्रथाके लिए अनिवार्य है, पर जो सकट सन् १९२६ मे आरम्भ हुआ, वह जल्द टलता नजर नहीं आता। हो सकता है कि भगीरथ प्रयत्न करनेपर सम्पत्की अवस्था कुछ दिनोके लिए फिर लौट आये, पर अन्तमे इसका फल यही होना है कि निकट भविष्यमे यह सकट और भी भीषण रूप धारण करेगा । उस समय यदि पूंजी-प्रथाके आन्तरिक विरोधोको मिटानेका प्रयत्न न किया गया तो वर्तमान सभ्यताका निश्चय ही अन्त हो जायगा और संसारका एक बड़ा हिस्सा अनिश्चित कालके लिए अन्धकार और बर्वरताके खड़ेमे जा गिरेगा। नयी मशीनोकी सहायतासे पैदावारको अपरिमित रूपसे बढानेका खूब मौका मिला। आपसकी प्रतिस्पर्धाके कारण मुनाफा कमानेके लिए पंजीपतियोने आवश्यकतासे अधिक माल तैयार कर दिया। इसका फल यह हुआ कि मशीनका माल नही बिक सका और व्यापारमे स कट उपस्थित हो गया। कारखानोको बन्द कर देना पड़ा, कारखानेदारोका दिवाला निकल गया और मजदूरोकी वेकारी वढने लगी। कुछ दिनोमे गोदामोका भरा माल विक गया, धीरे-धीरे वन्द कारखाने फिर खुलने लगे, मजदूरी वढी और व्यापार फिर तेजीसे चलने लगा। किन्तु यह अवस्था वहुत दिनोतक कायम न रही। फिर वही रफ्तार वेढंगी शुरू हुई । प्रत्येक कारखानेमे अपरिमित मात्रामे माल तैयार होने लगा। बाजारमे मन्दी हो गयी। खरीददारोकी कमीसे माल फिर गोदाममे इकट्ठा होने लगा । यह दौर बरावर चलता रहा । सम्पत् और विपत्की अवस्थाएँ ५-७ वर्षका अन्तर देकर वरावर उपस्थित होती रही। १. 'जनवाणी' सितम्बर १९४७ ई०
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