युक्तप्रान्तकी असेम्बलीमे दिया भाषण ४७३ राष्ट्रीयता उदारतासे पूर्ण थी, ओतप्रोत थी। वह सकुचित नही थी। संकुचित राष्ट्रीयता वर्तमान समाजका एक बडा अभिशाप है, किन्तु महात्माजीका हृदय विशाल था। जिस प्रकार भूकम्प मापक यन्त्र पृथ्वीके मृदुसे मृदु कम्पको भी अपनेमे अकित कर लेता है उसी प्रकार मानव-जातिकी पीडाकी क्षीण-से-क्षीण रेखा भी उनके हृदय-पटलपर अकित हो जाती थी। हमारा देश समय-समयपर महापुरुषोको जन्म देता रहा है और मै समझता हूँ कि इस व्यवसायमे भारत सदासे कुशल रहा है, अग्रणी रहा है । पतित अवस्थामे भी, गुलामीकी हालतमे भी भारतवर्ष ही अकेला ऐसा देश रहा है, जो जगद्वन्द्य महापुरुपोको जन्म दे सका है । मैं समझता हूँ कि इस व्यवसायमे भारत सदासे कुशल रहा है । हमारे देशमे भगवान् बुद्ध हुए तथा अन्य धर्मोके प्रवर्तक हुए, किन्तु सामान्य जनताके जीवनके स्तरको ऊँचा करनेमे कोई भी समर्थ नही हो सका । यह यथार्थ है कि कि पीडित मानवताके उद्धारके लिए नूतन धार्मिक सन्देश उन्होने दिये थे, समाजके कठोर भारको वहन करनेकी समर्थता प्रदान करनेके लिए उन्होने नये-नये आश्वासन दिये थे, उनके विक्षुब्ध हृदयोको शान्त करनेके लिए पारलौकिक सुखोकी आशाएँ दिलायी थी, लेकिन सामान्य जीवनके जो कठोर सामाजिक वन्धन है, जो जनताके ऊपर कठोर शासन चल रहा है, जो सामाजिक और आर्थिक विषमताएँ है, जो दीनो और अकिंचन-जनोको भाँतिभाँतिके तिरस्कार और अवहेलनाएँ सहनी पड़ती है, इन सब समस्याग्रोको हल करनेवाला यदि कोई व्यक्ति हुआ तो वह महात्मा गाधी है । उन्होने ही सामान्य जनोके जीवनके स्तरको ऊँचा किया। उन्होने जनतामे मानवोचित स्वाभिमानको उत्पन्न किया। उन्होने ही भारतीय जनताको इस बातके लिए सन्मत प्रदान किया कि वह साम्राज्यशाहीके भी विरुद्ध विरोध करे और यह भी पाशविक शक्तियोका प्रयोग करके नही, किन्तु आध्यात्मिक बलका प्रयोग करके हुअा । उनकी अहिसा बेजोड थी। भगवान् बुद्धने कहा था 'अक्रोधेन जयेत् क्रोधम्' अर्थात् अक्रोधसे क्रोधको जीतना चाहिये । उनकी अहिसाका सिद्धान्त भी केवल व्यक्तिगत आचरणका उपदेशमात्र न था, किन्तु सामाजिक समस्याग्रोको हल करनेके लिए अहिंसाको एक उपकरण बनाया और राजनीतिक क्षेत्रमे अपने महान् ध्येयकी प्राप्तिके लिए उसका सफल प्रयोग करना महात्मा गाधीका ही काम था और चूंकि वह ससारमे अहिंसाको प्रतिष्ठित करना चाहते थे, इसलिए उनकी अहिंसाकी व्याख्या भी अद्भुत, वेजोड़ और निराली थी। उनकी अहिंसाकी शिक्षा केवल व्यक्तिगत आचरणकी शिक्षा नही है । उनकी अहिंसाकी व्याख्या वह महान् अस्त्र है जो समाजकी आजकी विषमतायोका, जो वैमनस्य और विद्वेपके कारण है, उन्मूलन करना चाहती है । अहिसाके ऐसे व्यापक प्रयोगसे ही अहिंसा प्रतिष्ठित हो सकती है। सामाजिक और आर्थिक विषमताको दूर कर, मनुष्यको मानवतासे विभूषित कर, आत्मोन्नतिके लिए सवको ऊँचा उठाकर जाति-पाँति और सम्प्रदायोके बन्धनोको तोड़कर ही हम अहिसाकी सच्चे अर्थोमे प्रतिष्ठा कर सकते है । यदि किसीने यह शिक्षा दी तो गांधीजीने शिक्षा दी । इसलिए यदि हम उनके सच्चे अनुयायी होना चाहते है तो समाजसे इस विषमताको, इस ऊँच-नीचके भेदभाव को, इस अस्पृश्यताको, समाजके नीचे-से-नीचेके
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४८६
दिखावट