पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/६३

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राष्ट्रीयता और समाजवाद १६. कर्जदार किसानोकी मदद की जायगी और अत्यधिक सूद लेनेकी हर प्रकारको प्रथापर नियन्त्रण रहेगा। १७. नियमित सेनाके अतिरिक्त राष्ट्रको रक्षाका अन्य साधन संगठित करनेके लिए राज्यकी ओरसे नागरिकोको सैनिक शिक्षा देनेका प्रवन्ध रहेगा। इस योजनाको स्वीकार कर कांग्रेसने अपने संगठनको सुदृढ बना लिया है । इससे कांग्रेसकी आधार-शिला मजबूत हो गयी है । साम्राज्यवादका सफलताके साथ विरोध करने के लिए काग्रेसको सर्वसाधारणकी सहानुभूति और सहायताकी परम पावश्यकता है और यह सहायता तभी प्राप्त हो सकती है जव जनताको यह विश्वास हो जाय कि नवीन प्रवन्धमे उसके सुखकी वृद्धि होगी। लोकतन्त्र और साम्यवादके इस युगमे कोई संस्था सर्वसाधारणकी आर्थिक उन्नतिकी उपेक्षा नही कर सकती। चीनकी राष्ट्रीय संस्था 'कुप्रोमिन्ताग' ने आर्थिक योजनाकी घोषणा करके ही अपनी शक्तिको बढ़ाया था और १९२६-२७ मे सफलता प्राप्त की थी। काग्रेसकी यह अार्थिक योजना तात्कालिक आवश्यकतायोके ध्यानसे ही बनायी गयी है और सर्वाङ्ग पूर्ण नहीं है, तथापि हम आशा करते हैं कि भारतवासी अपनी स्थिति और आवश्यकताअोके अनुकूल एक न एक दिन एक सुन्दर शासन-प्रणालीका अवश्य आविष्कार करेगे । कार्यका अवसर मिलनेपर भारतवासी भी रूसियोंकी तरह अपने घरकी अच्छी व्यवस्था करनेमे समर्थ होगे और अपने देशमे भी एक नये प्रकारके सामाजिक और आर्थिक सगठनकी अभिव्यक्ति होगी जो आज भारतवासियोमे अन्तहित है । हम ऊपर विराम सन्धिका जिक्र कर चुके है । सरकारने गाधी-अरविन समझोतेकी शर्तोका ठीक-ठीक पालन नहीं किया । इस प्रकार यह ख्याल हो रहा था कि शायद महात्माजी गोलमेजमे सम्मिलित न होगे । महात्माजीने न जानेका निश्चय भी कर लिया था, पर वायसरायसे बातचीत करनेके उपरान्त एक और समझौता हुआ जिसके कारण महात्माजीने लन्दन जाना स्वीकार किया। इस समय महात्माजी लन्दनमे है। उनका वहाँ वहुत स्वागत और सत्कार हो रहा है, पर इससे यह न समझना चाहिये कि उनको इस यात्रामे कोई सफलता मिलेगी। इगलैण्डके सब राजनीतिक दलोकी नीति भारतके लिए एकही सी है । इगलैण्डका मजदूर दल भी साम्राज्यवादकी भावनासे अछूता नही वचा है । हम प्रारम्भमें ही कह चुके है कि भारतमे इगलैण्डका आर्थिक लाभ दिन-ब-दिन बढता जाता है और इस आर्थिक लाभको रक्षाके लिए जिन अधिकारोको अपने हाथमें रखना आवश्यक होगा उन्हे ब्रिटिश राजनीतिज्ञ कदापि न छोडेगे। ब्रिटिश साम्राज्यमें भारतवर्षका बड़ा ऊँचा स्थान है। भारतको अपने कब्जेमे रखनेके लिए ही अंग्रेजोने फारस, मिस्र, अफगानिस्तान, बरमा, तिब्बत और 'मोसेपटेमियामें हस्तक्षेप किया। ब्रिटिश साम्राज्यके अन्य स्वार्थोकी रक्षाके लिए भी भारतपर अधिकार बनाये रखना आवश्यक है । अव भारतकी सेनाका प्रधान कार्य उत्तर-पश्चिमकी सीमाकी रक्षा करना नहीं रह है। उसका प्रधान कार्य ब्रिटिश साम्राज्यके उन हितोकी रक्षा करना है जो चीन, फारस आदि देशोमे पाये जाते है, इसलिए ब्रिटिश सरकार भारतकी सेनाको भारतीय गया