जन-जागृतिका पुनर्जन्म ५१ नियन्त्रणमे नही रखना चाहती। साइमन कमीशनकी रिपोर्टमे कहा गया है कि 'भारतकी रक्षाका प्रश्न केवल भारतसे ही सम्वन्ध नही रखता, ब्रिटेन भी इस प्रश्नमें दिलचस्पी रखता है। भारतकी सीमाप्रोकी रक्षाका प्रश्न समस्त साम्राज्यका प्रश्न है और इसलिए भारतीय सेनाका नियन्त्रण और संचालन ब्रिटिश सरकारद्वारा होना चाहिये। गोलमेज परिषद्का संगठन भी कार्यसाधक नही है । इसके प्रतिनिधि प्रजाकी ओरसे चुने नही गये है । भारत और इङ्गलैण्डके सव दल और विचारके लोग इसमे आमन्त्रित किये गये है और सर्वसम्मतिसे ही जो निश्चय होगे वही स्वीकार किये जायेंगे । हम तो यह समझते है कि भारतका तभी निस्तार होगा जब काग्रेस अपनेमे इतनी शक्ति पैदा कर लेगी कि ब्रिटिश सरकारको सर्वदल सम्मेलन न बुलाकर केवल कांग्रेसके प्रतिनिधियोसे ही समझौता करना पड़े। जन-जागृतिका पुनर्जन्म एशियाके पुनर्जागरणका इतिहास विश्व-इतिहासकी कुछ घटनाअोसे जो एशिया- वासियोके लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी अत्यधिक सम्बन्धित है । ऐसी सर्वप्रथम महान् घटना है १९०४-१९०५ का रूस-जापान युद्ध । इस घटनासे एशियावासियोमे नव- जीवनका सचार होता है । उन्नीसवी शताब्दीके अन्तमे अत्यन्त कटु अनुभवोके पश्चात् एशियावासी इस निष्कर्षपर पहुंचे थे कि उनका पश्चिमी शक्तियोसे कोई मुकावला नही । सैनिक कलामे पश्चिमी शक्तियाँ उनसे कही श्रेष्ठ है । उस समय एशियावासी अपना आत्मविश्वास सर्वथा खो चुके थे और विदेशियोका सामना करनेकी कल्पनातक उनके मनसे जाती रही थी। स्वयं हमारे देशमे १८५७के महान् विद्रोहके दमनके उपरान्त जनताके हृदयमें यह धारणा बद्धमूल हो चुकी थी कि ब्रिटिश सनाका विरोध करना व्यर्थ है । उसके आगे नतमस्तक होना ही उचित है । देशके जिन भागोमे विद्रोह हुआ था वहाँकी जनता अवश्य ही क्रुद्ध थी और उसके हृदयमे तीव्र असन्तोषकी ज्वाला धधक रही थी। उसे ब्रिटिश राजका आधिपत्य स्वीकार करनेमे निश्चय ही बिलम्ब लगा परन्तु उसके हृदयमे भी पलभरके लिए भी ऐसी कल्पना नही उठी कि वह अपनी खोयी हुई स्वतन्त्रता पुन प्राप्त कर सकेगी। परन्तु भारतके उन भागोमे, जहाँ विद्रोहकी आँच नही पहुँचने पायी थी और जहाँ सबसे पहले पश्चिमी संस्कृतिका प्रसार हुआ, एक ऐसा अग्रेजीदॉ मध्यमवर्ग उठ खडा हुअा जिसके हृदयमे अग्रेजी सस्कृति और अग्रेजी संस्थाप्रोके प्रति विशेष प्रेम था और जिसकी यह प्रबल धारणा थी कि ईश्वरकी कृपासे ही भारतमे अग्रेजी राज्य स्थापित हुआ है और उससे देशका कल्याण ही होगा। भारतमे ब्रिटिश शासनका एक परिणाम यह हुआ कि यहाँका समृद्ध और वर्द्धमान व्यापारी सम्प्रदाय, जिसका कि देशपर भारी राजनीतिक प्रभाव था, सर्वथा नष्ट कर दिया गया । १८३३के चार्टर ऐक्टके जरिये कम्पनीकी व्यापार सम्बन्धी मानोपली
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