पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/६७

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मध्यम राष्ट्रीयता और समाजवाद सम्मुख उपस्थित करके उन्हें दूर करायें। ऐसा अनुमान था कि शासकवर्ग द्वारा शिक्षित श्रेणीको दी गयी इस मान्यतासे जनताकी दृष्टिमें उसका मान वढ जायगा और नेतृत्व प्राप्तिमे सहायता मिलेगी। कांग्रेसने विना किसी स्पष्ट उद्देश्य अथवा निश्चित नीतिके ही अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया । प्रथम अधिवेशनके अध्यक्षने काग्रेसके उद्देश्य बताते हुए कहा था कि “साम्राज्यके विभिन्न भागोके सच्चे कार्यकर्तामोके वीच पारस्परिक प्रेम एवं मैनीकी अभिवृद्धि और वर्तमान प्रमुख सामाजिक समस्यानोपर भारतके शिक्षित सम्प्रदायका सुविचारित और अधिकृत मतसग्रह ही काग्रेसका उद्देश्य है।" राजनीतिक क्षेत्रमे अध्यक्षकी केवल इतनी ही मांग थी कि सरकारका अाधार विस्तृत हो और शासनमें जनताको उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो । काग्रेस-नेता इस बातको बार बार दोहराते थे कि वे ब्रिटिश साम्राज्यको परम राजभक्त प्रजा है। यदि उनपर कभी ऐसा आरोप लगाया जाता था कि वे राजभक्त नही है तो वे विशेष रूपसे इस आरोपका खण्डन करते थे। पर काग्रेसने सामाजिक प्रश्नोपर कभी विचार नही किया। वह मुख्यतः राजनीतिक प्रश्नोपर ही विचार करती रही। उसकी माँगे उदार होती थी और अनुनय विनय और विरोधकी पद्धतिद्वारा ही वह उनकी पूतिकी आकांक्षा रखती थी। १८८७के मद्रास अधिवेशनमे कार्य संचालनके नियम स्थिर करनेके लिए एक कमेटी बनायी गयी । इस कमेटीने इस आशयका एक नियम बनानेकी सिफारिश की कि काग्रेसकी ओरसे प्रचारकार्यके लिए एक स्थायी समिति नियुक्त की जाय परन्तु उसे यह आदेश रहे कि वह सरकारकी कमियो और खामियोकी ओर जनताका ध्यान आकृष्ट करते हुए भी जनताको वताये कि भारतमे अंग्रेजी राज्यने कितना सुख और प्रानन्द-विखेरा है और अग्रेजलोग बहुत नेक इरादोसे भारतपर शासन कर रहे है । बादमे जब भारतीय नौकरशाहीपरसे उनका विश्वास जाता रहा तब भी अंग्रेजकी ईमानदारी और न्यायप्रियतामे उनका विश्वास अडिग बना रहा । १८८हमे कांग्रेसका यह उद्देश्य घोषित किया गया कि वह वैधानिक उपायोसे भारतीय जनताके हितोकी रक्षा करना चाहती है । सूरतमे काग्रेसके टुकड़े हो जानेके उपरान्त १९०८मे प्रयागमे एक सम्मेलन हुआ जिसमे कांग्रेसका उद्देश्य यह बताया गया कि वह वैधानिक उपायोसे औपनिवेशिक स्वराज्य प्राप्त करना चाहती है । यह वस्तुत: बड़े आश्चर्यकी वात है कि भारतमे राजनीतिक जागृति अत्यन्त मन्द गतिसे हुई और औपनिवेशिक स्वराज्यका लक्ष्य स्थिर करनेमे काग्रेसको कोई २३ वर्ष लग गये। फिर भी काग्रेस ब्रिटेनसे सम्बन्ध विच्छेद करनेके लिए प्रस्तुत न थी। पूर्ण स्वाधीनतांका निश्चय करनेके लिए उसे और २१ वर्ष लग गये। अन्य पराधीन देशोमे ऐसी वात बहुत कम देखनेमे आती है । चीनकी कूमिताग (प्रजा-पार्टी) का जन्म १८६० ई०के लगभग हुआ था। प्रारम्भमे वह वहुत छोटी पार्टी थी। न तो उसका कोई निश्चित कार्यक्रम ही था और न लोकतन्त्रात्मक आधार ही। पर मंचू शासनको समाप्त करनेका उसका लक्ष्य स्पष्ट था और उसने लक्ष्य प्राप्त करनेके