पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/७७

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राष्ट्रीयता और समाजवाद पसन्दीदगोकी मुहर लगाना चाहा है जिसके प्रधानाध्यापकका कार्य मैं इधर कई सालसे कर रहा हूँ-मेरा मतलब काशी विद्यापीठसे है । जो विद्यार्थी इस शिक्षा-सस्थासे निकले है उनमेंसे अधिकांश राष्ट्रीय कार्यमे लगे हुए है और उन्होने स्वतन्त्रताके युद्धमें उचित भाग लेकर विद्यापीठके गौरवको देशमे बढाया है और उसकी कीर्तिको उज्ज्वल किया है। उनकी शिक्षा-दीक्षामे और उनको विद्या तथा आचरणसे सम्पन्न करनेमे मेरा भी हाथ रहा है और मुझे इसका गर्व है। मैं समझता हूँ कि जीवनको अन्तिम घडियोमे मै जब अपने कामका हिसाब लगाऊँगा तव मुझे अपने जीवनका वह भाग जो विद्यापीठकी सेवामे व्यतीत हुआ है सबसे अधिक सन्तोषप्रद प्रतीत होगा। यही मेरी पूंजी है और इसी पूंजीके बलपर मेरा राजनीतिक व्यापार चलता है । मैं समझता हूँ कि इसी सबबसे मै आप महानुभावोके स्नेहका भाजन वन सका हूँ। यद्यपि मैं इस सम्मानके लिए आपका ऋणी हूँ तथापि मैं आपको इस चुनावके लिए मुवारकवाद नही दे सकता। यह जानते हुए भी कि मै इधर दो वर्षसे काफी अस्वस्थ रहता हूँ और किसी कठोर भारको वहन करनेमे असमर्थ हूँ आपने ऐसे असाधारण समयमे मुझको सम्मेलनका सभापति निर्वाचित किया है । देश और ससारके लिए यह एक अनोखा युग हे । उन्नति और प्रतिक्रियामे सब जगह संघर्ष चल रहा है । प्रतिक्रियागामी शक्तियाँ जो पतनोन्मुख है अपने अस्तित्वके लिए एक आखिरी कोशिश कर रही है । प्रगतिशील शक्तियाँ उनसे अपनी रक्षा करनेके लिए तथा अपने विकासके लिए सचेष्ट है। एक नवीन अभ्युदयके चिह्न सव ओर परिस्फुट हो रहे है । क्रान्तिकी लहर, कही द्रुत वेगसे, तो कही मन्द गतिसे, उद्वेलित हो रही है । इस समय प्रत्येक व्यक्तिका, जो मानव-समाजका कल्याण और अभ्युदय चाहता है, यह पुनीत कर्तव्य है कि वह प्रतिक्रियाका विरोध करे और क्रान्तिका स्वागत कर उस नवीन सभ्यता-शालीनताकी मूलभित्तिकी स्थापनामे सहयोग करे जिसके आधारपर एक नये सामाजिक जीवनकी इमारत खड़ी की जानेवाली है । इस समय कोई भी कर्मी जो देशका सच्चा सिपाही है खामोश नही बैठ सकता और देशके आह्वानकी उपेक्षा नही कर सकता। आप समझ सकते है कि इस समय मेरी कितनी प्रवल इच्छा होगी कि मै अपने कर्तव्यका यथार्थ पालन करूँ किन्तु मनको इच्छा मनमे ही रह जाती है और रुग्ण तथा क्षीण शरीर सकल्पको पूरा नही होने देता। ऐसी स्थितिमे मैं आपके निमन्त्रणको अस्वीकार करनेका दुस्साहस नही कर सकता था किन्तु आपको तो मुझे इस कठिनाईमें न डालना चाहिये था। यह आपकी गलती है कि मैं इस रुग्णावस्थामे इस आसनपर विठा दिया गया हूँ। मैं आशा करता हूँ कि आपमे कमसे कम इतनी वजादारी तो जरूर होगी कि आप अपनी गलतीको निभावेगे। मैं आपसे पहले ही अपनी कमजोरियां बता चुका हूँ। यह स्पप्ट है कि आपके सहयोगके विना मैं इस सम्मेलनका कार्य सुचारु रूपसे सम्पन्न न कर सकूँगा। मुझे आपके सहयोगकी जत्रत है और मुझे आशा है कि मेरी प्रार्थना व्यर्थ न जायगी। यह खुशीकी बात है कि पिछले कुछ महीनोमे हममेंसे हर एकने उस विद्वेषकी अग्निको