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विजयी होने पर ऐहिक भोग प्राप्त करने की चर्चा है तो कहीं मरने पर अप्सराओं की प्राप्ति की --( जीविते लभ्यते लक्ष्मी मृते चापि सुरांगणा )। वीरों को स्वर्ग-लोक मात्र ही नहीं मिलता कभी-कभी वे यमलोक, शिवलोक और ब्रह्मलोक के ऊपर सूर्यलोक भी प्राप्त कर लेते हैं :

जमलोकन शिवपुर ब्रह्मपुर । भान थान माने भियौ ॥

रासो में वीरों के लिये सूर्य-लोक की महिमा सर्वोपरि दिखाई पड़ती है । महाभारत के प्रख्यात योद्धा और इच्छा-मृत्यु वाले महात्मा भीष्म शर-शय्या पर पड़े हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते रहे, क्योंकि दक्षिणायन या दक्षिण-मार्ग अर्थात् आवागमन से मुक्ति के वे आकांक्षी थे। उपनिषद काल तक सूर्य ब्रह्म के पर्याय निश्चित हो चुके थे । 'ईशावास्य' में उपासक अपने मार्ग की याचना करता हुआ कहता है कि आदित्य मण्डलस्थ ब्रह्म का मुख ज्योतिर्मय पात्र से ढका हुआ है । हे पूषन्, सुझ सत्यधर्मा को श्रात्मा की उपलब्धि कराने के लिये तू उसे उधार दे :

हिरमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
तत्त्वं पूषनपा सत्यधर्माय दृष्टये ।।१५

और है जगत्पोषक सूर्य ! हे एकाकी गमन करने वाले, हे यम ( संसार का नियम करने वाले ) ! हे सूर्य ( प्राण और रस का शोषण करने वाले ) ! है प्रजापतिनंदन ! तू अपनी किरणों को हटा ले ( अपने तेज को समेट ले ) । तेरा जो अतिशय कल्याणमय रूप है उसे मैं देखता हूँ । यह जो श्रादित्य मडलस्थ पुरुष है वह मैं हूँ :

पूषन्नकर्षे यम सूर्य प्राजापत्य व्यूह रश्मीन्समूह ।
तेजो यते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ पुरुष :
सोऽहमस्मि ।। १६

अस्तु, सूर्य-लोक पहुँच कर ब्रह्म और जीव की एकता अनिवार्य थी इसी से स्वर्ग-लोक, शिव-लोक, ब्रह्म-लोक ( ब्रह्मा का लोक ), यम-लोक आदि भोग-लोकों की अपेक्षा आवागमन मिटाने वाले सूर्य-लोक की प्राप्ति 'की अभिलाषा ज्ञानी योद्धाओं द्वारा की जानी उचित ही थी ।

स्वामी के लिये युद्ध में मृत्यु प्राप्त करने वाले हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मो के योद्धाओं को क्रमश: स्वर्ग और बिहिश्त में अप्सराओं और हूरों की प्राप्ति के दर्शन कवि की सहिष्णुता के परिचायक हैं। फ़ारसी इतिहासों में जहाँ कमीने काफ़िर हिन्दू तलवार के घाट उतार कर दोज़ख भेज दिये