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जाते हैं वहाँ राम्रो के मुस्लिम योद्धा स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते हैं। कुछ स्थल देखिये :

( अ ) लघु बंधु हस्तमा हनिय सूर ।
बर जात बरै ले चली हूर ॥ ५५, स० २४,
(ब) तहां पान हिंदवान भए चक्र चूरं ।
तहां हूर रंभा बरै बरह सूर ।। १५५,स० ४३,
(स) जीवंतह की रति सुलभ । मरन पच्छर हूर ।। १५८, सं०४८

नगर--

योगनिपुर में यमुना तट पर निगमबोध के उद्यान के फूलों और फलों आदि का वर्णन करके, पृथ्वीराज के दरबार का प्रसंग है, फिर नगाड़ों के घोष वाली इन्द्रपुरी सदृश दिल्ली, वहाँ के सात खण्ड के प्रासाद, जना- कीर्ण हाद में अमूल्य वस्तुओं के क्रय-विक्रय इत्यादि का कवि ने उल्लेख किया है :

सुधं निर्गम बोधयं, जर्मन त सौधर्यं ।
तहाँ सु बाग ब्रच्यं, बने सु गुल्ल अच्छयं ॥ ५.
समीर तासु बासयं, फलं सु फूल रासयं ।
बिरष्ण बेलि डंबरं, सुरंग पान मरं ॥ ६
जु केसरं कुमकुमं, मधुप्प वास तं भ्रमं ।
अनार दाष पल्लव, सु छत्र पति ढिल्लव ।। ७
जु श्री फलं नरंगयं, सबह स्वाद होतयं ।
चत मोर वायकं मनों संगीत गायकं ।। १०
उपम्म बाग राजयं मनो कि इंद्र साजर्व ।
.... .... .... ,.... .... .... ।। ११

घुरि घुम्मिय व निसान घुरं । पुर है प्रथिराज कि इंद्रपुरं ।।
प्रथमं दिलिय किलिये कहने । यह पौरि प्रसाद षना सतनं ।। २३
वन भूप अनेक अनेक मती । जिन बंधिय बंधन छत्रपती ।।
जिन अश्व चढ़ै वरि अस्सि लर्ष । बल श्री प्रथु मत्र अनेक मष ।। २४
दह पोरि सु सोमत पिथ्थ बरं । नरनाह निसंकित दाम नरं ।।
भर हसु लघन भरयं । धरि बस्त अमोल नयं नरयं ।। २५
तिहि बीच महल्ल सतध्वनयं । रूप कोटि धर्जी से कभी गनयं ।।
नर सागर तारँग सुद्ध परें । परि राति सुरायन बाहु परे ।। २६, स०५९