पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/११७

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को दान दिये तथा सारे कृत्य किये और दस दिन तक अत्यन्त श्रानन्द पूर्वक उत्साह मनाया ।' पुत्र का जन्म सुनकर सोमेश्वर ने हाथी, घोड़ों और वस्त्रों द्वारा धावा दिया तथा उत्साह और ग्रानन्द से पूर्ण होने के कारण राजा के मुख की कान्ति बढ़ गई। तदुपरान्त उन्होंने लोहाना और चंद को बुलाकर ननिहाल से इन्द्र को अजमेर लाने के लिये कहा । फिर नरेश ( स्वयं ) उत्साहपूर्वक सहस्त्रों हाथी, घोड़े, सुभट और सौ दासियों सहित ( पुत्र को लेकर ) अजमेर चले ४ विक्रम के १११५ श्रानन्द शाका में शत्रुओं को जीतने वाले और उनके पुरों का हरण करने वाले नरेन्द्र पृथ्वीराज उत्पन्न हुए।" महाबाहु सोमेश्वर के पूर्व जन्म की तपस्या के गुण से और उनके पुण्य के कारण जगत् विजयी पृथ्वीराज का जन्म हुआ । अनंगपाल की पुत्री ने पुत्र का प्रसव किया मानो घनी मेघमाला में दामिनी दमक उठी । राव ने सोमेश्वर को बधाई दी जिन्हें एक सहस्र सुवर्ण मुद्रायें और एक ग्रश्व दिये जाने की यात्रा हुई । एक ग्राम, एक घोड़ा और एक हाथी उन्होंने अपने परिग्रह ( में प्रत्येक ) को देकर प्रसन्न किया, दरबार में नगाड़ों का तुमुल नाद होता था मानो बादलों का गर्जन हो अथवा समुद्र में उत्ताल तरंगों का शब्द हो । पुत्र को पधराकर राजा ने उसका मुख देखा और उसे अपने पूर्व कर्मों का फल जाना । विद्वान् ब्राह्मणों की सहायता से शिशु के वेदोक्त और शास्त्रोक्त जात-कर्म किये । मंगलाचरण करके नृत्य प्रारम्भ हुए जिनमें अप्सराओं सदृश आलाप ने देवलोक की अनुभूति कराई "--

अनस पुत्र पुत्र जन्म । बिज्जल चमंकि अनु मेघ धन्म ।।
बाइ राव सोमेस दीन । इक सहस हेम हय हुकम कीन ।। ६९७
दिय ग्राम एक हय इक हथ्य । परिग्रह प्रसाद सह कीन तथ्य ।।
नीसांन बाजि दरबार जोर। धन गञ्ज जान दरिया हिलोर ।। ६९८
पराइ राइ मुत्र दरस कीन । क्रित क्रम्म पुब्ब फल मान लीन ।।
करि जात क्रम्म मति ग्रंथ सोधि । वेदोक्त विप्प वर बुद्धि बोधि ।। ६९९ मंगल उच्चार करि नृत्य गान । अछ छरि अलाप सुर भुवन जान ।। ७००


( १ ) छं० ६९० : ( २ ) छं० ६९१; ( ३ ) छं० ६९२; ( ४ ) छं० ६९३ (५) छं० ६९४; ( ६ ) छं० ६९६ ।

टिप्पणी-- इछं० ६९२ प्रदिम है क्योंकि चंद ने अपना जन्म पृथ्वीराज के साथ ही लिखा है । उक्त वक्तव्य के आधार पर उसका नवजात पृथ्वीराज को लेने जाना असम्भव है ।