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इसके बाद पृथ्वीराज के जन्मोत्तर गुणों का उल्लेख किया गया हैं जिसे सुनकर सोमेश्वर हर्षित और शोकाकुल हुए । तदुपरान्त उनके जन्मकाल के ग्रहों की स्थिति और जन्मपत्र का फल वर्णन करके फिर उत्सव का प्रसंग है जिसके अंत में दरवार की अवर्णनीय भीड़, सुगन्धित द्रव्यों की वास से नासिका के अधाने और मानों यदुवंश में यदुनाथ का जन्म हुआ हो यह जानकर क्षत्रियों के छत्तीस वंशों के मुखों के विकसित होने का विवरण है--

दरबार भीर बरनी न जाइ । सुगंध वास नासा अवाइ ।।
विगसंत वदन छत्तीस वंस । जदुनाथ जन्म जनु जदुन वंस ।। ७१५

उदय (अभ्युदय ) --

अनेक युद्धों के विजेता, जयचन्द्र, भीमदेव और शहाबुद्दीन सदृश युगीन महान प्रतिद्वन्दियों को परास्त करने वाले दिल्लीश्वर पृथ्वीराज के जीवन का चित्रण करने वाले इस इतिहास और कल्पना मिश्रित काव्य में उनका उत्तरोत्तर अभ्युदय दिखाते हुए, अन्तिम युद्ध में उनके वन्दी होने तथा नेत्र विहीन किये जाने पर भी शत्रु बदला लेने की चर्चा करके रासोकार ने 'यतो धर्मस्ततो जयः' के अनुसार अपने युद्ध और दया वीर नायक का पक्ष उठाया है ।

नयन बिना नरघात । कहो ऐसी कहु किद्धी ।।
हिंदू तुरक अनेक । हुए पै सिद्ध न सिद्धी ।।
धनि साहस पनि हथ्थ । धनि जस बासन पायौ ।।
ज्यों तरू छुट्टे पत्र । उडै अप सतियौ शायौ ।।
दिव्यै सु सथ्यौथ साह कौं । मनु नलिन नम तें टरयौ ।।
गोरी नरिद कवि चंद कहि । सय वरपर हम परयौ ।। ५६५ स०६७

( १३ ) कवि चंद ने अपने काव्य का नाम चरित्र के नाम से रखा हैं और आद्योपान्त पृथ्वीराज का चरित्र वर्णन होने के कारण उसको 'पृथ्वीराज रासो' नाम दिया है ।

'रासो' शब्द के विविध अर्थ विद्वानों द्वारा लगाये गये हैं । कविराजा श्यामलदान 'रहस्य' शब्द से इसकी व्युत्पत्ति मानते थे और डॉ० काशी- प्रसाद जायसवाल का भी ऐसा ही अनुमान था । फ्रांसीसी विद्वान् गार्सा


( १ ) पृथ्वीराज रहस्य की नवीनता; ( २ ) प्रिलिमिनरी रिपोर्ट ग्रॉन ऑपरेशन इन सर्च व वार्डिक कानिकल्न, पृ० २५, फुट लोट ।