पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१४

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की डॉ० बूलर अपने शिष्य की नवीन शोध से स्वाभाविक ही प्रभाति हो रॉयल एशियाटिक सोसाइटी आच बंगाल को ( प्रोसीडिंग्ज़, जे० आर० ए० एस० बी०, जन ७ दिसं० १८९३ ई० ) पत्र लिख बैठे——चंद के रासो का प्रकाशन बंद कर दिया जाय तो अच्छा होगा । वह ग्रंथ जाली है । इस पत्र की प्रतिक्रिया शन्न हुई और सोसाइटी में इस अनूठे काव्य के सुचहि सनद और अध्ययन में लगे हुए श्री बीम्स, ग्राउज़ और डॉ० ह्योनले जैसे मेधावी विद्वान् विरत हो गए तथा रासो की भूरि-भूरि प्रशंसा (मार्डन बनक्यूलर लिटरेचर व हिन्दुस्तान, ऋ० ३-४ में) करने वाले डॉ० सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन की भति फिर राई ( प्रोसी०, जे० आर० एस० बी०, १८९३ ई०) । पं.मोहनलाल बिष्णुलाल पांड्या, कवर कन्हैया जु , बाबू श्यामसुन्दर दास और मिश्रबन्धु पर रासो के पक्षपात के अभियोग लगे । इस समय तक से को अनैहातिसिक सिद्ध करने वालों का पक्ष मुंशी देवीप्रसाद (ना० प्र० प०, भाग ५, सुदु १:०१ ३६, पृ० १७०} और महामहोपाध्याय पं: गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ( कोशोत्सव स्मारक संग्रह, सन् १६२८, ३०, पृ० २६-६६ ) ने ले लिया था ! पृथ्वीराज विजय महाकाव्य' और उसके प्रणेता की बखिया उधेड़ने वाले (सरस्वती, नवंबर १९३४ ई०, जून १९३५ ई० और अप्रैल १९४२ ई०) महामहोपाध्याय पं० मथुरा प्रसाद दीक्षित ने अपने विविध लेखों द्वारा रासो को चंद की अधिकारी रचना सिद्ध करने का भरसक उद्योग किया परन्तु इन साहित्यकारों की आवाज़ इतिहासकारों के आगे नक्कारवाने में तूती की आवाज़ बन कर रह गई । रासो के ऐतिथे पर संदेह प्रकट करने वालों ने इतिहास विरोधी बातों का रासो से संकलन करके दस-पाँच अकाट्य तर्क पेश किये परंतु साहित्यकारों को कवि चंद का साहित्यिक उत्तराधिकारी मान बैठने बालों के न्यायालय में क्या इतना सौजन्य न था कि वे यह भी बतलाते कि इस काव्य में ऐतिहासिक तथ्य कितने हैं । रासो की ऐतिहासिक विवेचनाओं की विशाल राशि के संतुलन में अनैतिहासिक तत्व नगण्य सिद्ध होंगे, जिनका परवत प्रक्षेप होना भी असंभव नहीं है, यह एक साहित्यसेवी के नाते मेरा विनम्र प्रस्ताव हैं ।

फारसी इतिहासकारों के साक्ष्य पर रासौ और उसके रचयिता पर छींटे कसने वाले ही नहीं वरन् ‘मत क्रानिकल्स' उल्लिखित ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित पृथ्वीराज के सिक्कों के बायीं ओर (पट पर) हमीर' (<अ० अमीर‌) शब्द देखकर लगे हाथ भारतीय शौर्य के प्रतीक चौहान के चरित्र पर भी सुलतान शोरी की अधनता स्वीकार करने का आरोप लगाने वाले, अपनी