पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१७५

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साथ विदर्भ की ओर उड़ गया ।' विदर्भ जाकर उन हंसों ने दमयन्ती को को घेर लिया और वह जिस हंस को पकड़ने के लिये दौड़ती थी, वही कहता था'-- 'हे दमयन्ती, निषध देश में नल नाम का राजा है। वह अश्विनीकुमार के समान सुन्दर हैं । मनुष्यों में उसके सदृश कोई नहीं हैं। यह साक्षात् कन्दर्प है । यदि तुम उसकी पत्नी हो जाओ तो तुम्हारा जन्म और रूप दोनों सफल हो जायें । हम लोगों ने देवता, गन्धर्व, मनुष्य, सर्प और राक्षसों को घूम-घूम कर देखा है । नल के समान सुन्दर पुरुष कहीं देखने में नहीं आया जैसे तुम स्त्रियों में रत्न हो, वैसे ही नल भी पुरुषों में भूषण है......:

दमयन्ती नलो नाम निषधेषु महीपतिः ।
अश्विनो सदृशो रूपे न समास्तस्य मानुषाः ।। २७
कन्दर्प इव रूपेण मूर्तिमानभवत्स्वयम् ।
तस्य वै यदि भार्या त्वं भवेथा वर वर्णिनि ।। २८
सफलं ते भवेज्जन्स रूपं चेदं सुमध्यमे ।
वयं हि देवगन्धर्वमनुष्योरगराचसान् ॥ २६
हृष्टवन्तो न चास्माभि ष्टपूर्वस्तथाविधः ।
त्वं वापि रत्नं नारीणां नरेषु च नलोवर: ।। ३०
विशिष्टया विशिष्टेन संग्रामो गुणवान्भवेत् ।
एवमुक्ता तु हंसेन दमयन्ती विशांपते ।। ३१,

यह सुनकर दमयन्ती ने कहा--'हे हंस, तुम नल से भी ऐसे ही बात कहना । और हंस ने निषेध लौट कर नल से सब निवेदन कर दिया ।

'श्रीमद्भागवत्' में कृष्ण की रानियाँ कहती हैं-'हे हंस, तुम्हारा स्वागत है, आओ यहाँ बैठो और कुछ दुग्धपान करो । हे प्रिय, हम समझती हैं कि तुम श्रीकृष्ण के दूत हो, अच्छा उनकी बातें तो सुनाओ, कहीं किसी के वश न होने वाले वे प्रियतम कुशल से तो हैं'।


१. एममुक्तस्ततां हंसमुत्ससर्ज महीपतिः ।

ते तु हंसाः समुत्पत्य विदर्भानगमस्ततः ॥ २२, वही ;

२. श्लोक २३ - २६, वही ;

३. अब्रवीतत्र तं तं त्वमप्येकं नले वद । ३२, वही ;

४. श्लोक ३२, वही ;

५. हंस स्वागतमास्वतां पिब पयो ब्रह्म शौरैः कथां ।

दूतं त्वां तु विदाम कचिदचितः स्वस्त्यात उक्तंपुरा ।। १०-९०-२४;