पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१८१

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शीतल मंद सुगंध । श्राइ रिति राज अचानं ॥
रोम राइ अंकुच नितंब । तुच्छं सरसानं ॥
बढ्दै न सीत कटि छीन है । लज्ज मानि टंकनि फिरै ॥
ढंकै न पत्त ढंकै कहै । बन वसंत मंत जु करे ॥ ६६

उपर्युक्त वर्णन सुनकर पृथ्वीराज के काम बाण लगे और वे रात्रि भर शशिवृता की चिन्ता मे लीन रहे, प्रात:काल उन्होने हंस से पुन: जिज्ञासा की (छं०६७-६८) । उसने बताया कि देवगिरि के राजा ( अर्थात् उसके पिता ) द्वारा उसकी सगाई जयचन्द्र के भ्रातृज वीरचन्द्र से करने के लिये भेजी गई है, यह जानकर राजकुमारी शोक-सागर मे डूब गई (छं० १०७-८) वह चित्ररेखा अप्सरा का अवतार है तथा बर रूप से आपकी प्राप्ति के लिये प्रतिदिन गौरी पूजन कर रही है (छं० १०६) । मैं शिवा की (पार्वती) की प्रेरणा के फलस्वरूप शिव की आज्ञा से तुम्हारे पास आया हूँ :

शिवा बानि शिव वचन करि । हो येठयो प्रति तुकूक ।।
कारन कुअरि वृत्त को मन । कामन भय मुझाझ ।।

तदुपरान्त उसने निम्न छन्द मे राजकन्या का नल-शिख वर्णन किया.

पोनो रूपीन उरजा, सम शशि वंदना, पद्मपत्रायताक्षी ।।
बोष्ठी दुरंग नासा, गज गति गमना, दक्षना वृत्त नाभी ।।
स्त्रिगंधा चारुकेशी, मृदु प्रभु जघ्ना, वाम मध्या सु वेसी ।।
हेमांगी कति हेला, वर रुचि दसना, काम वाना कटाक्षी ।। ११४,

इस पर पृथ्वीराज ने शास्त्रज्ञ इंस से चार प्रकार की स्त्रियों का वर्णन पूछा (छं० ११५ ), और उसने उन सबका वर्णन करके (छं० ११६- २६ ) पुन:,परन्तु इस बार सबसे अधिक विस्तार से देवगिरि की पद्मिनी शशिवृता का नख-शिव के मिस रूप-सौन्दर्य प्रस्तुत किया (छं० १३०-५२ ) ।


१. यही गन्धर्व रूपी हंस शशिवृत्ता से पहले कह चुका है कि मैं देव-

राज का कार्य करने लिये तुम्हारे पास आया हूं .

उच्चर हंस सत्रित सम । मति प्रधान गन्धर्व हम ।।

सुरराज काज चाये करन । तीन लोक हम बाल गम ।। ७१,

और फिर दूसरी बार भी कहता है कि इन्द्र ने करुणा करके मुझे भेजा है :

तिहि चार करि तुमहि पै आयो । करि करना यह इन्द्र पठायौ ।। ७४