पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१८२

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तथा चौहान द्वारा अप्सरा के शशिवृता रूप में अवतार लेने का कारण पूछने पर (छं० १५३), उसने श्राप और शिव वरदान की बात कही '(छं० १५५-६१ ) और यह भी बता दिया कि शिव की वाणी के अनुसार वह आपकी ( अवश्य ) प्राप्त करेगी :


तुछ दिन अंतर ऋमियं । श्रगम भरतार यांमि उद्ध लोकं ॥
फिर अच्छर अवतारं । पांमै तुम इस बर बांनी ॥ १६२,

फिर आगे कहा कि इस मेनका का अवतार आपके लिये ही हुआ है

और सुंबर संकेत सुनि । हंस कहै नर राज ।।
मैंन केस अवतार इह । तुश्र कारन कहि साज ।। १६४

इस अवसर पर शशिवृता की मँगनी कमधज्ञ को दी जाने, उसके दिल्लीश्वर के गुणों में अनुरक्त होने, शिव पूजन करने और शिव की आज्ञा से ही स्वयं उन्हें बुलाने थाने की बात हंस एक बार फिर दोहरा गया (छं० १६५-६८, तथा :

चढ़न कहिय राजन सो हेर्स । उडिड चलौ दक्षिण तुम देतं ।।१६९ ) |

इस वर्णन से प्रतीत होता है कि पृथ्वीराज को देवगिरि ले जाने के लिये हंस दूत को अथक परिश्रम करना पड़ा था । यद्यपि प्रस्तुत 'प्रस्ताव' के प्रारम्भ में वे शशिवृता के प्रति अतिशय कामासक्त चित्रित किये गये हैं फिर भी समुद्रशिखर की पद्मावती और कन्नौज की संयोगिता को लाने के समान इस स्थल विशेष पर जो वे अपेक्षाकृत कम व्यग्र दिखाई देते हैं, इसके कई कारण भी हैं। परन्तु अन्ततः प्रेम-घटक हंस दूत सफल हुआ और दिल्ली- श्वर ने दस सहस्त्र अश्वारोही सैनिकों को सुसज्जित किये जाने की आज्ञा दे दी :

सुनत भवन चढ्यौ नृप राजं । कहि-कहि दूत दुजन सिरताजं ।। १६९
भय अनुराग राज दिल्ली वै। दस सहस्त्र सज्जी नूप हेबै ॥ १७०,

तथा हंस से देवगिरि के राजा का वृत्तान्त पूछा (छं० १७१ ) । उसने भानु यादव के धन, ऐश्वर्य, बल, प्रताप, सेना, पुन, पुत्रियों आदि उल्लेख करके (छं० १७२-७४), इसी प्रसंग के साथ बतलाया कि देवगिरि के श्रानन्दचन्द्र की कोट-हिसार में विवाहित, गान यादि विद्याओं में पारंगत, इस समय विधवा और अपने भाई के साथ रहने वाली बहिन (छं० १७५-७६) तथा अपनी शिक्षिका के मुँह से श्रापके पराक्रम आदि का वृत्त सुनकर शशिवृता आप में अनुरक्त हो गई और आपकी प्राप्ति का प्रण कर बैठी :


१. परन्तु यहाँ पूर्वं वर्णित चित्ररेखा के स्थान पर रम्भा आ जाती है।