पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२००

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( १६० ) हैं । पिछले 'काव्य-सौष्ठव' और 'महाकाव्यत्व' शीर्षक प्रकरणों में उनका परिचय दिया जा चुका है FI जायसी के 'पदमावत' के बारहमासा के- और सूर Ref जो बिरे साजन, शंकर मैटि गहंत | तपनि मृगशिरा जे सधैं, ते अद्रा पलुहंत || यदि के पिक चातक वन बसन न पावहिं बायस बलिहिन खात । सूरस्याम संदेसन के डर पृथिक न वा मग जात ॥, आदि स मर्मस्पर्शी भावों के व्यक्तीकरण का श्रेय ॠतु वर्णन विषयक काव्य-रूढ़ि कोही है। रासो के अन्य महत्वपूर्ण कथा-सूत्र भी विचारणीय हैं। जब तक नवीन शिलालेख और ताम्रपत्र इस चरित - कथा काव्य के अनेक तथ्यों का इतिहासकारों द्वारा मनोनीत कराने के लिये नहीं मिलते तब तक कथा- सूत्रों और काव्य- रूढ़ियों के सहारे साहित्यकार कुछ निर्णय देने और विवेक जागृत करने का सद्प्रयास तो कर ही सकता है । यह किससे छिपा है कि उसकी इस दिशा की खोज वैज्ञानिक गुरु ( Formulae ) नहीं, जिनका परिणाम स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष हो जाता है वरन् ये वे मार्ग हैं जिनका सतर्क अनुसरण दुसाध्य गन्तव्य तक पहुँचने में कुछ दूर तक सहायता अवश्य कर सकता 1 प्रामाणिकता का द्वन्द जनश्रुति ने दिल्लीश्वर पृथ्वीराज और उनकी शूरवीरता की गाथा, हिन्दी- प्रदेशों के घर-घर में व्याप्त कर रखी थी। दिल्ली के इस अन्तिम हिन्दू सम्राट् का नाम हिन्दू जनता के लिये दान, उदारता, पराक्रम, निर्भयता, साहस और शौर्य की जाग्रति बनकर इन पौधेय गुणों के आवाहन का मंत्र भी हो गया था | अमित गुणों वाले इस योद्धा के कार्यों से अभिभूत होकर विमुग्ध जनता की अनुश्रुति का उनमें अन्य श्रुत परन्तु अनुरूप तथा बहुधा अति- रंजित घटनाओं द्वारा श्रभिवृद्धि करना स्वाभाविक ही था । भारत की जातीय और धार्मिक नव चेतना को प्राण देने वाले शिवाजी और छत्रसाल के साथ राणा प्रताप, हम्मीरदेव तथा राणा साँगा की स्मृति सहित पृथ्वीराज का नाम भी हिन्दू, सम्मान और श्रद्धा के साथ स्मरण करता रहा । निरक्षर जनता का