पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२०१

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( १६१ ) सम्बल यदि पृथ्वीराज विषयक लोक-कथायें थीं तो शिक्षित जनता का कठहार चंद बरदायी कृत 'पृथ्वीराज रासो' था; जिसकी छाप एक ओर जहाँ हिन्दी, गुजराती और राजस्थानी साहित्यों पर थी वहाँ दूसरी ओर उसने राजपूताना के राज्यों के इतिहास को भी प्रभावित कर रखा था । बारहवीं शताब्दी में यद्यपि भारत में युद्ध और शासन का भार क्षत्रियों पर ही था परन्तु पृथ्वीराज की जय और पराजय जनता की अतः हिन्दुनों की जीत और हार थी । रातो में हिन्दू जनता को लक्ष्य करके ही चंद ने मानों इस प्रकार के वर्णन किये हैं--- 'हिंदू सेन उप्पर, साहिबज्जे रन जंगी" । 'पृथ्वीराज रासो' की कीर्ति योरप पहुँचाने का श्रेय कर्नल टॉड (Colonel James Tod) को है । इस विद्या मनीषी ने न केवल रासो के एक दीर्घ श्रंश का अंग्रेजी में अनुवाद किया वरन् इस वीर काव्य के आधार पर अपना 'राजस्थान' नामक विख्यात इतिहास -ग्रन्थ लिखा । 'राजस्थान' में उक्त नाम वाले प्रदेश के प्राय: प्रत्येक शासक वंश के पूर्व पुरुष का सम्बन्ध पृथ्वीराज और उनके रासो से पाकर प्राच्य विद्या-विशारद योरोपीय विद्वानों का इस महाकाव्य की ओर उन्मुख होना प्राकृतिक था। श्री ब्राउज़ (E. S Growse ) ४, बीम्स ( John Beames ) और डॉ० ह्योर्नले (Rev. Dr. १. हिन्दू सेना पर शाह ने भयानक धावा बोल दिया है ; २. राजस्थान, दो भाग, सन् १८२६ ३०; दि बाउ श्राव संजोगता, एशियाटिक जर्नल, (न्यू सीरीज़ ), जिल्द २५ ; तथा कनउज खंड, जे० आर० ए० एस० सन् १८३८ ई० ; ३. इस्त्वार द ला लितरात्यूर ऐन्दुई ए ऐन्दुस्तानी, गार्सा द वासी, प्रथम भाग, पृ० ३८२; तथा ( हिन्दी ) टाड - राजस्थान, अनु० पं० रामगरीब चौबे, सम्पा० म० म० पं० गौरीशंकर हीराचंद ओझा, भूमिका पृ० ३३; ४. दि पोइम्स व चंद वरदाई, जे० ए० एस० बी०, जिल्द ३७ भाग १, सन् १८६८ ३० ; फर्दर नोट्स न प्रिथिराज रायसा, वही, भाग १, सन् १८६६ ३० ; ट्रांसलेशन्स फ्राम चंद, वही ; रिज्वाइन्डर ङ मिस्टर बीम्स, वहीं, भाग १, सन् १८८७० ई०; ए मेट्रिकल वर्शन यावदि श्रोषिनिंग स्टैंजाज़ नाव चंदस् प्रिथिराज रासो, वहीं, जिल्द ४२, भाग १, सन् १८७३ तथा इंडियन ऐन्टीक्वेरी, जिल्द ३, पृ० ३४० ; ५. दि नाइनटीन्थ बुक नाव दि जेस्टेस श्राव प्रिथीराज बाई चन्द