पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

( १६२ ) के A F. Rudolf Hoernle ) ' के इस दिशा में प्रयास मूलत: टॉड के 'राजस्थान' की प्रेरणा के फल हैं। जिस समय इन विद्वानों को नियुक्त कर, बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी ने रासो के उद्धार का बीड़ा उठा रखा था, उसी समय के लगभग जोधपुर के मुरारिदान चारण और उदयपुर कविराज श्यामलदास ने उक्त काव्य की ऐतिहासिकता पर शंका उठाई जिसे काश्मीर में अति अधूरे 'पृथ्वीराजविजय' की खोज करने वाले प्रो० बूलर (Bühler) और उनके शिष्य डॉ० मोरिसन (Dr. Herbert Morrison)u का बल मिला, जिसके फलस्वरूप सोसाइटी ने रासो कार्य बंद कर दिया । 5 बरदाई, इनटाइटिल्ड 'दि मैरिज विद पदमावती, ' लिटरली ट्रांसलेटड फ्राम बोल्ड हिन्दी, जे० ए० एस० बी०, जिल्द ३८, भाग १, सन् १८६६ ई० ; रेप्लाई टु मिस्टर ग्राउज़, वही ट्रांसलेशन्स याव सेलेक्टेड पोर्शन्स आव बुक I आव चंद बरदाईज़ एपिक, वही, जिल्द ४१, सन् १८७२ ई० ; लिस्ट या बुक्स कन्टेन्ड इन चंद पोइम, दि प्रिथ्वीराज रासौ, जे० आर० ए० एस० सन् १८७२ ई० ; और स्टडीज़ इन दि ग्रामर आव चंद बरदाई, जे० ए० एस० बी०, जिल्द ४२, भाग २, सन् १८७३ ई० ; 5 १. बोधेका इंडिका, (ए० एस० बी०), न्यू सीरीज़, संख्या ३०४, भाग २, फैसीक्यूलस १, सन् १८७४ ई०, (सम्पादित पाठ पृथ्वीराज रासो समय २६-३५) ; तथा वही, संख्या ४५२, भाग २, फैसीक्यूल १, सन् १८८१ ई०, ( रेवातट समय का अंग्रेजी अनुवाद ) ; तथा नोट्स यान सम प्रोसोडिकल पिक्यूलिरिटीज़ श्राव चंद, इंडियन ऐंटीक्वेरी, जिल्द ३, पृ० १०४ ; २. जे० बी० बी० ए० एस० जिल्द १२, सन् १८७६ ई० S ३. दि ऐन्टीकिटी, आथेन्टीसिटी ऐन्ड जिनूइननेस व दि एपिक काल्ड दि प्रिथीराज रासा, ऐन्ड कामनली ऐसक्राइब्ड टु चंद बर- दाई, जे० ए० एस० बी०, जिल्द ५५, भाग १, सन् १८८६ ई० ; तथा पृथ्वीराज रहस्य की नवीनता ; ४. प्रोसीडिंग्ज, जे० ए० एस० वी०, जनवरी-दिसम्बर सन् १८६३ ई०, पृ० ८२ ५ सम अकाउन्ट व दि जीनिनोलॉजीज़ इन दि पृथ्वीराज विजय, वियना श्ररियन्टल जर्नल, भाग ७, सन् १८६३३० ;