पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२०३

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( १६३ ) कविराज श्यामलदास के विरोधी तर्कों का उत्तर पं० मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या ने दिया । उदयपुर के बाबू रामनारायण दूगड़ ने पृथ्वीराज की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए रासो की त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित किया। मुंशी देवीप्रसाद ने रासो की समीक्षा करते हुए लेख लिखा । बाबू श्यामसुन्दर दास ने चंद को हिंदी का यदि कवि निश्चित किया | बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी द्वारा रासो का काम बंद देखकर, नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने पं० मो० वि० पंड्या, बाबू राधाकृष्णदास, कुँवर कन्हैया जू और बाबू श्यामसुन्दर दास द्वारा उसका सम्पादन कराके प्रकाशित कराया। मिश्रबन्धुनों ने चंद को हिंदी का आदि महाकवि और पृथ्वीराज का दरवारी माना । महामहोपाध्याय पं० हरप्रसाद शास्त्री ने चंद के वंशवृक्ष पर प्रकाश डाला | डॉ० टेसीटरी (Dr, L. P. Tessitory ) ने रासो की दो वाचनात्रों की संभावना की ओर संकेत किया । श्री अमृतलाल शील ने देवगिरि, मालवा, रणथम्भौर आदि के प्राचीन और पृथ्वीराज के समकालीन शासकों के प्रमाण देते हुए इन राज्यों से सम्बन्धित रासो की ये तथा अन्य कई चर्चायें सप्रमाण निराधार सिद्ध की। महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर हीराचंद श्रभा ने रासो को अनैतिहासिक ठहराते हुए, पृथ्वीराज के दरवार में चंद के अस्तित्व तक पर शंका उठाई और इस 'भट्ट भांत' को सन् १. पृथ्वीराज रासो की प्रथम संरक्षा, सन् १८३० २. पृथ्वीराज चरित्र, सन् १८६६ ई० ३. पृथ्वीराज रासो, ना० प्र० प०, भाग ५ सन् १६०१ ई०, ३० १७० १ ४. हिंदी का यदि कवि ना० प्र० प०, भाग ५, वही ५. सन् १६०१-६६१२ ई० '

६. मिश्रवन्धु विनोद, तृतीय संस्करण, पूर्व ५६१; हिंदी नवरत्न हिंदी का रासौ साहित्य, हिंदुस्तानी, अप्रैल १६३६ ई० ; ७. प्रिलिमिनरी रिपोर्ट धान दि आपरेशन इन सर्च याव मैनुस्क्रिप्टस श्राव बार्डिक क्रानिकल्स, ए० एस० बी०, सन् १९१३ ई० ८. विदितोथेका इंडिका, ( ए० एस० बी० ), न्यू सीरीज़, संख्या १४१३, सन् १९१८ ई०, पृ०७३ ६. सरस्वती, भाग २७ संख्या ५, नई, ०५५४-६२ तथा संख्या ६, जून, ० ६७६-८२, सन् १६२६ ई० :