पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२०४

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( १६४ ) १५४३ ई० के बास-पास कभी रचा गया सिद्ध किया । पं० रमाशंकर त्रिपाठी ने चंद के वंशजों पर प्रकाश डाला | पंजाब विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ० वूलनर ( Dr. A. C. Woolner ) ने डॉ० वनारसीदास जैन और महामहोपाध्याय पं० मथुराप्रसाद दीक्षित को अपने विश्वविद्यालय के सात सहत्र छन्द परिमाण वाले रासो का सम्पादन करने के लिये प्रोत्साहित किया । दीक्षित जी ने उक्त हस्तलिखित ग्रन्थ का प्रथम समय 'असली पृथ्वीराज रासो के नाम से सटीक प्रकाशित किया और अपने विविध लेखों४ में चंद और उसकी कृति को प्रामाणिक प्रतिपादित करते हुए गौ० ही ० ा का खंडन किया । श्रोभा जी ने दीक्षित जी के मत का विरोध करते हुए रासो को पुन: अप्रामाणिक ही निश्चय किया ।" हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने वालों में प्रमुख गार्सा द तासीर, डॉ० ग्रियर्सन ७ ( जो बाद में बदल गये ) और बाबू श्यामसुन्दर दास ( जिन्होंने बाद में चंद द्वारा रासो के अपभ्रंश में रचे जाने पर विश्वास प्रकट किया ) १० को छोड़ कर १. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, नवीन संस्करण, भाग १, सन् १९२० ई०, पृ० ३७७-४५४; वहरे, भाग ६, पृ० ३३ ३४; तथा पृथ्वीराज रासो का निर्माण काल, कोषोत्सव स्मारक संग्रह, सन् १९२८ ई० ; २. महाकवि चंद के वंशधर, सरस्वती, नवम्बर सन् १६२६ ई० i ३. मोतीलाल बनारसी दास, लाहौर, सन् १९३८ ३० ; ४. पृथ्वीराज रासो और चंद वरदाई, सरस्वती, नवम्बर सन् १९३४ ई० ; चंद बरदाई और जयानक कवि, सरस्वती, जून सन् १६३५ ई०; पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता, सरस्वती, अप्रैल सन् १९४२ ई० ; ५. पृथ्वीराज रासो के संबंध की नवीन चर्चा, सुधा, फरवरी सन् १९४१ ई०; ६, इस्त्वार द ला लितरात्यूर ऐन्दुई ए ऐन्दुस्तानी, प्रथम भाग, पृ० ३८२. ང་ྡ དྡི॰ ; ७. माडर्न वर्नाक्यूलर भाग १, सन् १८५ लिटरेचर आव हिन्दोस्तान, जे० ए० एस० बी०, ई०, पृ० ३-४ ८. प्रोसीडिंग्ज, जे० ए०, एस० बी०, सन् १८६३ ई०, पृ० ११६, ट्यूरी नोटिस व मिस्टर एफ० एस० प्राउज़ ; ६. हिंदी साहित्य, (चतुर्थ संस्करण, सं० २००३. वि० ), पृ० ८१-८६ १०. पृथ्वीराज रासो, ना० प्र० प०, वर्ष ४५ अंक ४, भाव, सं० १६६७ वि०