पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२०५

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( १६५ ) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल १, डॉ० रामकुमार वर्मा और पं० मोतीलाल मेनारिया ने रासो को जाली और अनैतिहासिक माना । मुनिराज जिन- विजय ने पृथ्वीराज और जयचन्द्र सम्बन्धी चार अपभ्रंश छन्दों की खोज प्रकाशित कर, चंद बलद्दिक ( बरद्दिया < वरदायी ) द्वारा अपना मूल ग्रन्थ अपभ्रंश में लिखने की श्राशा प्रकट करके इस क्षेत्र में फिर गर्मी पैदा कर दी। डॉ० दशरथ शर्मा" ने अथक परिश्रम करके राम्रो विषयक अनेक तथ्यों की १. हिंदी साहित्य का इतिहास, (सं० २००३ वि० ), १०४४ २. हिन्दी साहित्य का यालोचनात्मक इतिहास, (द्वितीय संस्करण ), पु० २४६ ; ३. राजस्थान का पिंगल साहित्य, १० ५२, सन् १९५२ ई० ; ४. पुरातन प्रबन्ध संग्रह, भूमिका, पृ० ८-१० सं० १६६२ वि० ( तन् १९३५ ई० ) ; प्र० ए०, ५. पृथ्वीराज रासो की एक प्राचीन प्रति और उसकी प्रामाणिकता, ना कार्तिक सं० १९९६ बि० ( सन् १९३६ ई० ); अग्निवंशियों और पह्लवादि की उत्पत्ति कथा में समता, राजस्थानी, भाग ३, अङ्क २, अक्टूबर १९३६ ३०; पृथ्वीराज रासो की कथाओंों का ऐतिहासिक श्राधार, राजस्थानी, भाग ६, अङ्क ३, जनवरी १६४० ई०; दि एज ऐंड हिस्टारीसिटी श्राव पृथ्वीराज रासो, इंडियन हिस्टारिकल क्वार्टली, जिल्द १६, दिसम्बर १९४० ई०, तथा वही, जिल्द, १८, सन् १६४२ ई०, सुर्जन चरित्र महाकाव्य, ना० प्र० प० सं० १९६८ वि० (सन् १६४१ ई०) : पृथ्वीराज रासो संबंधी कुछ विचार, वीणा, अप्रैल सन् १९४४ ई० ; चरलू के शिलालेख, राजस्थान भारती, भाग १, अङ्क १० अप्रैल सन् १९४६ ई० ; दि ओरिजिनल पृथ्वीराज रासो ऐन अपभ्रंश वर्क, वही संयोगिता, राजस्थान भारती, भाग १, अङ्क २-३, जुलाई- अक्टूबर सन् १६४६ ई० ; चन्द्रावती एवं आबू के देवड़े चौहान, वही, भाग १, अङ्क ४, जनवरी सन् १६४७ ३०, पृथ्वीराज रासो की भाषा, वही, भाग १, अङ्क ४; पृथ्वीराज रासो की ऐतिहासिकता पर प्रे महमूद खाँ शीरानी के श्राक्षेप, वही, भाग २, अङ्क १, जुलाई सन् १९४८ ई० ; कुमारपाल चालुक्य का शाकंभरी के श्रणराज के साथ युद्ध, यही, भाग २, अङ्क २, मार्च १६४६ ३०१ राजस्थान के नगर एवं ग्राम (बारहवी तेरहवीं शताब्दी के लगभग ), वही भाग ३, १, अप्रैल