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चरित'[१] में श्राबू के ऋषि वशिष्ठ के अग्नि-कुण्ड से एक वीर पुरुष की उत्पत्ति की कथा दी है जो विश्वामित्र के पक्ष को परास्त करके, ऋविर की अपहृत नन्दिनी गाय लौटा लाया था, और इस पराक्रम के फलस्वरूप उसे परमार अर्थात् शत्रुहन्ता नाम मिला था। 'वाल्मीकि रामायण' के सर्ग ५४ और५५ में विश्वामित्र द्वारा वशिष्ठ की कामधेनु हरण, वशिष्ठ की ग्राहा से उसके द्वारा पहों और शकों की सृष्टि तथा विश्वामित्र की सेना के संहार का विवरण मिलता है। विशियों की उत्पत्ति का air रामायण की यही कथा प्रतीत होती है। डॉ० दशरथ शर्मा का कथन उचित ही है---- "ग्राज से हजारों वर्ष पूर्व जब शकादि की उत्पत्ति का समझना एवं समझाना आवश्यक हुआ तब वशिष्ठ एवं कामधेनु की कथा की कल्पना की आवश्य कता हुई । लगभग एक हजार वर्ष बाद जब पहवादि भारतीय जन समाज के अंग बन गये और परमारादि कई अन्य जातियों की उत्पत्ति को समझना समझाना आवश्यक हुआ तब इन जातियों के इतिहास को न जानते हुए कई कवियों ने उसी पुराने रामायण के कथानक का सहारा लिया और केवल जातियों का नाम बदल और इतस्तत: थोड़ा बहुत फेरफार कर पर- मारादि की उत्पत्ति कथा हमारे पूर्वजों के सामने रखी ।"[२]

ग्वालियर के सन् ८४३३० के प्रतिहार राजा भोजदेव की प्रशस्ति[३] दसवीं शती के राजशेखर[४] द्वारा भोज के पुत्र महेन्द्रपाल का 'रघुकुलतिलक' और उसके पुत्र का 'रघुवंशमुक्तामणि' वर्णन तथा शेखावटी वाले हर्षनाथ के मन्दिर की चौहान विग्रहराज की सन् ६८३ ई० की प्रशस्ति[५] में कन्नौज के


  1. ब्रह्माण्डमण्डपस्तम्भः श्रीमानस्त्यत्रु दो गिरिः॥४६ ततः क्षणात् सकोदण्ड: किरीटी काञ्चनाङ्गदः। उज्जगामाग्नितः कोऽपि सहेमकवच: पुमान्॥ ६८ दूरं संतमसेनेव विश्वामित्रेण सा ह्ता । तेनानिन्ये मुनेधेनुर्दिनथीरिव लेना निन्ये भानुना ।।परमार इति प्रापत् स मुनेर्नाम चार्थवत् ॥॥७१, सर्ग ११ ;६६
  2. अग्निवंशियों और पवादि की उत्पत्ति की कथा में समानता, राज-स्थानी भाग ३, अंक २, पृ० ५५;
  3. आर्केलाजिकल सर्वे याब इंडिया, वार्षिक रिपोर्ट, सन् १६०३४ ३० पु० २८० ;
  4. १-१९, बालभारत;
  5. इंडियन ऐन्टीक्वेरी, जिल्द ४२, पृ०५८-५९;