पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२१२

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( २०२ ) प्रतिहारों के ( रघुवंशी ) उल्लेख से प्रतिहारों के सूर्यवंशी होने का ; राजा विमलादत्त चालुक्य के सन् २०१८ ई० के दानपत्र[१], कुलोत्तुंग चोड़देव सोलंकी (चालुक्य ) द्वितीय के सन् १९७१ ई० के दानपत्र[२] और गुर्जरेश्वर भीमदेव चालुक्य को आचर्य हेमचन्द्र द्वारा 'द्वयाश्रय'[३] में सोम (चन्द्र) बंशी बताने से चालुक्यों के चन्द्रवंशी होने का तथा विग्रहराज चतुर्थ के राजकवि सोमेश्वर रचित चौहानों के इतिहास-काव्य[४], जयानक के 'पृथ्वीराज विजय[५] और नयचन्द्ररि के सन् १४०३ ई० के 'हम्मीरमहाकाव्य'[६] में चौहानों के सूर्यवंशी होने के प्रमाण देकर महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर हीराचंद ओझा[७] ने रासो की वंशी कथा की आलोचना की है।

चौहानों के अग्निवंशी कहे जाने के लिये वीं शती के कविराज सूर्यमल मिश्रण ने अपने 'वंशभास्कर' में लिखा है- 'कितने ही लोग अग्नि- वंश को सूर्यवंश कहकर वर्णन करते हैं, उनमें तेज तत्व की एकता के कारण विरोध नहीं समझना चाहिये ।[८]

पं० भाबरमल शर्मा ने परमारों की उत्पत्ति कथा का वा अपनी मौलिक कल्पना का सहारा लेकर सम्भवतः रासोकार द्वारा अदगिरि के


  1. एपिग्राफिया इंडिका, जिल्द ६, पृ० ३५१-५८;
  2. वही, जिल्द ६, पृ० २६६ ;
  3. श्लोक ४०-५६, सर्ग ६ ;
  4. राजपूताना म्यूजियम में चौहानों के ऐतिहासिक काव्य की प्रथम शिला;
  5. काकुत्समिक्ष्वाकुरघू च यद्दध- तपुराभव त्रिप्रवरं रघो: कुलम् । कलावपि प्राप्य स चाहमानतां प्ररूढतुर्यप्रवरं बभूव तत् ॥ २७२; तथा ७५०८०५४;
  6. अवातरमंडलतोथमासां पत्यु: मानुद्यतमंडलाम:। तं चाभिषिच्याश्वदीवरक्षाविधौ वधादेष मस्रं सुखेन ॥१-१६ ;
  7. पृथ्वीराज रासो का निर्मामा काल, कोषोत्सव स्मारक संग्रह, पृ०३३- ३६ तथा पृथ्वीराज रासो के संबंध की नवीन चर्चा, सुधा, फरवरी, सन् १९.४१ ई०, पृ० १३-१४;
  8. ववाहि किते बरनत सौर बखानि । तेज तत्व एकत्व करि, नहिं विरोध तहँ जानि || प्रथम राशि, दशय मयुख ;