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और उसी ने दानव कुल वाले थ्वीराज को अपने गर्भ में धारण किया :

सोमेसर तोचर घरनि अलगपाल पुत्रीय ॥
तिन सु पिथ्य गर्भ धारय । दानव कुल छत्रीय ॥ ६८५,

समयानुसार पुत्र का जन्म होने पर अनन्त दान दिये गये ।[१] पृथ्वी राज नामक अपने इस दौहित्र को अनंगपाल ने योगिनिपुर ( दिल्ली-राज्य ) का दान कर दिया और स्वयं तपस्या करने चले गये :

जुग्गिनिपुर चहुश्रान दिय । पुत्री पुत्र नरेस ॥
पारतिनिय किय तीरथ परवेस ॥१६, स० १८.

अमृतलाल शील ने दिल्ली के अशोक स्तम्भ ( जो फ़ीरोज़शाह की लाट कहलाती है ) पर सोमेश्वर के बड़े भाई विग्रहराज चतुर्थ उपनाम वीसल- देव के लेख के आधार पर लिखा है-'इससे यह प्रमाणित होता है कि सन् ११६३ ई० से कुछ पहले बीसलदेव ने दिल्ली की जय किया था। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि सोमेश्वर के राज्यकाल में दिल्ली में अजमेर का कोई करदाता राजा राज्य करता था अथवा अजमेर राज्य का कोई वेतनभोगी सामन्त वहाँ का दुर्ग-रक्षक था । पृथ्वीराज अजमेर के युचराज थे। उनका अपने पिता के अधीन किसी करदाता राजा अथवा उनके नौकर दुर्ग-रक्षक के घर गोद जाना केवल असम्भव ही नहीं, अश्रद्धेय भी प्रतीत होता है'[२]

म०म० ओझा जी[३] बिजोलियाँ के शिलालेख[४] के ग्राधार पर विग्रहराज का दिल्ली पर अधिकार बताते हुए, चौहान और गोरी के अंतिम युद्ध में 'तबकाते-नासिरी'[५] के अनुसार दिल्ली के राजा गोविंदराज की मृत्यु का उल्लेख करके निश्चित करते हैं कि पृथ्वीराज तीसरे के समय दिल्ली,


राजरासो' के नाम से म० म० मथुराप्रसाद दीक्षित ने हिंदी टीका सहित प्रकाशित किया है। अपनी इसी पुस्तक का उद्धरण देते हुए उन्होंने 'सरस्वती' नवम्बर सन् १९३४, १०४५८ पर लिखा है कि पृथ्वीराज की माता का नाम (कमला) रोटो वाले रासो में नहीं है ।

  1. ६० ६८७, स० १:५
  2. चन्दबरदाई का पृथ्वीराजरासो, सरस्वती, भाग २७, संख्या ५, जून १६२६ ई०, पृ० ५५६ ;
  3. पृथ्वीराजरासो का निर्माणकाल, कोषोत्सवस्मारक संग्रह, पृ०४१-४३;
  4. प्रतोल्यां च बलम्यां च येन विश्रामितं यशः । दिल्किाग्रहणश्रांतमाशिकालाभलंभितः ( तं ) || २२ ;
  5. मेजर रैवर्टी द्वारा अंग्रेजी में अनूदित ;