अजमेर के डक सामंत के अधिकार में थी। तदुपरान्त 'पृथ्वीराजविजय'[१] 'हम्मीरमहाकाव्य'[२] और 'सुर्जनचरित्र'[३] के आधार पर वे पृथ्वीराज की माता का नाम कपूरदेवी बतलाते हैं जो त्रिपुरी ( चेदि अर्थात् जबलपुर के आस-पास के प्रदेश की राजधानी के हैहय ( कलचुरी ) वंशी राजा तेज (राज) की पुत्री थी, जिसे सुर्जनचरित्रकार चन्द्रशेखर दक्षिण के कंतल देश के राजा की पुत्री कहते हैं ।
जी के मत का खंडन करते हुए म० म० दीक्षित जी ने लिखा-- 'सोमेश्वर के विवाह सम्बन्ध में इतना कहना पर्याप्त हैं कि राजाओं के अनेक विवाह होते थे। दिल्ली को अजमेरनरेश के अधीन मान लेने पर भी दिल्ली नरेश अजमेरनरेश के यहाँ विवाह नहीं करेगा, यह नहीं सिद्ध होता है। और जिस पृथ्वीराज्यकाव्य के आधार पर वे वैसा यारोप करते हैं वही सन्दिग्धास्पद है[४]।
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इति साहससाहचर्चचर्य समयज्ञैः प्र [ तिपादि ] तप्रभावाम्।
तनयां च सपादलक्षपुण्यैरुपयेमे त्रिपुरीपुर [न्द] रस्य ॥ [१६], सर्ग७;
पृथ्वी पवित्रतां नेतु राजशब्दं कृतार्थताम् ।
चतुर्थराधनं नाम पृथ्वीराज इति व्यथात् ॥ [३०],
मुक्त यति सुधवा वंशं गलत्पुरुषमौक्तिकं ।
देवं सोमेश्वरं द्रष्टु राजश्रीरुदकण्ठत ॥ [५.७]
आत्मजाभ्यामिव यश: प्रतापाभ्यामिवान्वितः ।
सपादलक्षमानिन्ये महामात्यैर्महीपतिः ॥ [ ५८ ],
कपूरदेव्यथादाय दानभोगाचिवात्मजौ ।
विवेशाजयराजस्व संपन्नूर्तिमती पुरीम् ॥ [५६], सर्ग ८ - ↑
इलाविलासी जयति स्म तस्मात्
सोमेश्वरोऽनश्वरनीतिरीतिः ॥ ६७***
कपूरदेवीति बभूब तस्य
प्रिया [ प्रिया ] राधनसावधाना ॥ ७२, सर्ग २ : - ↑
शकुन्तलाभां गुणरूपशील:
स कुन्तलानामधिपस्य पुत्रीम् ।
कर्पूरवारां जनलोचनानां
कपूरदेवीमुनुवाह विद्वान् ॥ ४, सर्ग १; - ↑ पृथ्वीराजरासो औौर चंद बरदाई, सरस्वती, नवंबर सन् १९३४ ३०, पु० ४५८;