पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२१९

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( २०६ ) डॉ० दशरथ शर्मा[१] का (अधूरे प्र प्र)ललितविग्रहराज' नाटक के आधार पर अनुमान है कि दिल्ली के अन्तिन तोमर शासक ने अपना राज्य वीसलदेव चतुर्थ की कन्या के दहेज में दे दिया था. यही कथा रासो के परवर्ती संशोधन कर्ताओं द्वारा उनके छोटे भाई सोमेश्वर के साथ जोड़ दी गई है। उन्होंने बीकानेर-फोर्ट लाइब्ररी की रायसिंह जी के समय की लगभग सं० १६५७ वि० लिखित ४००४ छन्द परिमाण बाली रासो की हस्त- लिखित प्रति की प्रामाणिकता की विवेचना करते हुए यह भी लिखा है- 'सोमेश्वर की स्त्री को अनंगपाल की पुत्री अवश्य बतलाया गया है। परन्तु संभव है कि वे पृथ्वीराज की विमाता हो । दिल्ली के वीसलदेव के अधीन होने पर भी तोमर राजाओं का वहाँ रहना संभव है[२]

कविराव मोहनसिंह दिल्ली में कुतुबद्दीन ऐबक की मसजिद के अहाते में पड़े हुए लोहस्तम्भ के लेख "संवत् दिल्ली ११०६ अनंगपाल वही का अर्थ 'दिल्ली संवत् अथवा पंड्या जी के अनंद विक्रम संवत् ११०६ में अनंग- पाल द्वारा दिल्ली बसाना' करके उक्त संवत् में ६१ वर्ष जोड़कर वि० सं० १२०० में अनंगपाल तोमर का दिल्लीश्वर होना मानते हैं और जिनपाल


  1. “ But is it not possible that Delhi might have been actually given in Dowry by the last Tomar ruler of the place to Visaldeva, the half brother of Someshvat, from whom the story might have been transferred to Someshvar by some late redact- or of Raso ? We learn from the Lalitvigraharaja- nataka that Visaldeva IV had actually determ mined to march tawards Indraprastha, the ruler of which had a daughter who had fallen in love with Visaldeva. Unfortunataly, the drama as we have it now is not complete. " The Age and the Historicity of the Prthviraj Raso, The Indian Historical Quarterly, Vol. XVI, Dece mber 1940,
  2. पृथ्वीराज रासो की एक प्राचीन प्रति और उसकी प्रमाणिकता, ना० प्र० प०, कार्तिक सं० १६६६ वि०, पृ० २७५८२ |