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रत्नसिंह पृथ्वीराज का भानजा नहीं हो सकता। चित्तौर के राना वंश में एक से अधिक समरसिंह और रत्नसिंह नाम के राना हो चुके हैं।"[१]

महामहोपाध्याय ओझा जी ने भावनगर इंसक्रिप्शन्स[२], नादेसमा के शिलालेख[३], पाक्षिकवृत्ति[४], चित्तौड़ के पास गंभीरी नदी के पुल की नवीं मेहराब के शिलालेख[५], चीरवे के विष्णु-मन्दिर के समरसिंह के प्रथम[६] और अन्तिम शिलालेख[७] के प्रमाण देते हुए लिखा है—"रावल समरसिंह वि॰ सं॰ १३५८ तक अर्थात् पृथ्वीराज की मृत्यु से १०९ वर्ष पीछे तक तो अवश्य जीवित था। ऐसी अवस्था में पृथाबाई के विवाह की कथा भी कपोलकल्पित है। पृथ्वीराज, समरसिंह और पृथाबाई के वि॰ सं॰ ११४३ और ११४५ (इस संवत के दो); वि॰ सं॰ ११३९ और ११४५; तथा वि॰ सं॰ ११४५ और ११५७ के जो पत्र, पट्टे, परवाने नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हिंदी पुस्तकों की खोज में फोटो सहित छपे हैं, वे सब जाली हैं, जैसा कि हमनें नागरी प्रचारिणी पत्रिका (नवीन संस्करण) भाग १, पृ॰ ४३२-५२ में बतलाया है।"[८]

शील जी रासो की कथा पर सन्देह प्रकट करके पूर्व ही यह भी लिख चुके थे कि समरसिंह और रत्नसिंह नाम के कई राना चित्तौड़ में हुए हैं। चित्तौड़ के राजाओं के विषय में पर्याप्त छान-बीन करके ओझा जी ने पहले यह अनुमान किया—'समतसी और समरसी नाम परस्पर मिलते-जुलते हैं…… अस्तु माना जा सकता है कि अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज दूसरे (पृथ्वीभट) की बहिन पृथाबाई का विवाह मेवाड़ के रावल समतसी (सामंतसिंह)



  1. चन्दबरदाई का पृथ्वीराजरासो, सरस्वती, भाग २७, संख्या ६, जून, सन् १९२६ ई॰, पृ॰ ६७८;
  2. सं॰ १२७० वि॰ का लेख, टिप्पणी पृ॰ ९३;
  3. सं॰ १९७९ वि॰ का लेख, भावनगर प्राचीन शोध संग्रह;
  4. पीटर्सन की तीसरी रिपोर्ट, पृ॰ १३० के अनुसार सं॰ १३०९ वि॰ रचित;
  5. जे॰ ए॰ एस॰ बी॰, जिल्द ५५ भाग १, सन् १८८६ ई॰, पृ॰ ४६-४७;
  6. वियना ओरियंटल जर्नल, जिल्द २१, पृ॰ १५५-६२
  7. उदयपुर के विक्टोरिया हाल में सुरक्षित;
  8. पृथ्वीराज रासो का निर्माण काल, ना॰ प्र॰ प॰, भाग १०, सं॰ १९-८६ वि॰ (सन् १९२९ ई॰), पृ० ४४-४५;