से हुआ होगा । दूँगरपुर की ख्यात में पृथाबाई का संबंध समती से बत- लाया भी गया है[१]। और उन्होंने फिर अनुमान किया- 'समतसी और समरसी के नामों में थोड़ा सा ही अंतर है इसलिये संभव है कि पृथ्वीराज रासो के कर्ता ने समतसी को समरसी मान लिया हो। वागड़ का राज्य छुट जाने के पश्चात् सामंतसिंह कहाँ गया इसका पता नहीं चलता । यदि वह पृथ्वीराज का बहनोई माना जाय तो बागड़ का राज्य छूट जाने पर संभव है कि वह अपने साले पृथ्वीराज के पास चला गया हो और शहाबुद्दीन गोरी के साथ की लड़ाई में मारा गया हो[२]। राजस्थान के अन्य इतिहासवेत्ता जगदीशसिंह गहलोत ने भी उपयुक्त अनुमान की पुष्टि की है[३]।
जैसा मैंने अपनी पूर्व पुस्तक[४] में दिखलाया था तथा प्रस्तुत पुस्तक[५] में विस्तार से विवेचना करते हुए सूचना दी है कि रासो के पृथ्वीराज (तृतीय) की बहिन पृथा से विवाह करने वाला, उनका समकालीन चित्तौड़ का सामंत- सिंह (समतसी ) था जिसके नाम का रूप लिपिकारों के अज्ञानवश समरसिंह या समरसी हो गया है। 'बड़ी लड़ाई से प्रस्ताव ६६' का छन्द ६, जिस में कुम्भ- कर्ण के बीदर जाने का उल्लेख है, परवर्ती प्रक्षेप हो सकता है । इस छन्द को हटा देने से कथा के प्रवाह में कोई बाधा नहीं पढ़ती । और रासो । के उन स्थलों पर जहाँ 'समरसिंघ' या 'समर' प्रयुक्त हुआ है, क्रमश: 'समत- सिंघ' और 'समत' कर देने पर छन्द की गति भी भङ्ग नहीं होती । रातो में कहीं-कहीं समर सिंह के स्थान पर सामंतसिंह भी प्रयुक्त हुआ है,
यथा- सामंत सिंह रावर चवै । सुगति सुगति लम्भ तुरत ॥ ६६-६५३
पृथ्वीराज के विवाह
रासो के 'विवाह सम्यो ६५' में पृथ्वीराज के चौदह विवाहों का निम्न- उल्लेख मिलता है :
प्रथम परनि परिहारि । राइ नाहर को जाइये॥
जा पाछै इंछनीय । सल की सुता बताइय॥