पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२२५

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जा पाछै दाहिमी। राय डाहर की कन्या ॥
राय कुरिति रीत । सुता हमीर सु मन्या ॥
राम साह की नंदिनी । बगुजरि वानी बरनि॥
ता पाछे पदमावती । जादवानी जोरी एरनी॥१
रायधन की कुअरि । दुति जमुगीरी सुकहियै ॥
कछवाही पज्जूनि । भ्रात वलिभद्र सुलहिये ॥
जा पाछै पुंडीर । चंद नंदनी सु गायव॥
ससि वरना सुंदरी । अवर हंसायति पायव ॥
देवासी सोलंकनी । सारंग की पुत्री प्रगट॥
पंगानी संजोगता । इते राज महिला सुपट ॥२

इससे आगे आगामी छन्द ३-१२ तक इन विवाहों में पृथ्वीराज की यवस्था का वर्णन इस प्रकार किया गया है। ग्यारह वर्ष की उन्होंने नाहरराय परिहार को युद्ध में मारकर उसकी कन्या से 'पुहकार' ( पुष्कर) में विवाह किया, बारह वर्ष की आयु में आबू-दुर्ग तोड़ने वाले चालुक्य को परास्त करके सलख की पुत्री और चाबू की राजकुमारी इंच्छिनी से परिणय किया, उनके तेरहवें वर्ष में चामंडराय ने बड़े उत्साह से अपनी बहिन दाहिमी उन्हें व्याह दी, चौदहवें वर्ष हाहुलीराय हमीर ने अपनी कन्या का तिलक भेज कर उनके साथ विवाह कर दिया, पन्द्रह वर्ष की स्था में वीर चौहान ने अत्यंत गहीर ( गम्भीर ) बड़गूजरी को व्याहा और इसी वर्ष अत्यन्त हित मानते हुए उन्होंने रामसाहि की पुत्री से भी विवाह कर लिया, सोलह वर्ष की अवस्था में उन्होंने पूर्व दिशा के समुद्र- शिवरगढ़ के यादव राजा की कन्या पद्मावती को प्राप्त किया, सत्रहवें वर्ष के गिरदेव[१] पर गर्जन करके रामघन की पुत्री ले आये, अठारहवें वर्ष उन्होंने वीर बलभद्र कछवाह की वहिन पज्जूनी का पाणिग्रहण किया, उन्नीस वर्ष की अवस्था में वे बंद पुंडीर की चन्द्रवदनी कुमारी पुंडीरनी से उपयमित हुए, बीस वर्ष की आयु में (देवगिरि की ) शशिता को ले आये, इक्कीसवें वर्ष संभर-नरेश ने ( रणथम्भौर की ) हंसावती से परिणय किया, वाइसवें वर्ष


  1. रासोसार, पृ० ३८२ पर 'गिरदेव' का शब्द - विपर्यय करके 'देवगिरि लिखा गया है, जो मेरे अनुमान से उचित नहीं है। देवगिरि की कुमारी शशिवृता भी पृथ्वीराज से विवाहित हुई हैं अस्तु 'गिरदेव' को 'देवगिरि' मानने में समस्या उलझती ही है सुलझती नहीं ।