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उन्होंने शूरमा सारंग की पुत्री से ब्याह किया । तथा छत्तीस वर्ष और छै मास की अवस्था में अपने चौंसठ सामंतों की ग्राहुति देकर पचास लाख शत्रु दल का सफाया करके पंग की पुत्री राठौरनी को ले थाये :

छत्तीस बरस घट मास लोग । पंगानि सुता ल्याये सुसोय ॥
रहरि ल्याय चौसठ मराय । पंचास लाख अरि दल खपाय ॥१२

परन्तु उपर्युक्त विवरण में उज्जैन के राजा भीमप्रमार को जीतकर उसकी कन्या इन्द्रावती के विवाह का उल्लेख नहीं किया गया है जिसका विस्तृत वर्णन समय ३२ और ३३ में दिया है । रासो के वर्णन क्रम में इन्द्रावती का विवाह हंसावती से पूर्व होता है अस्तु समय ६५ की सारंग की पुत्री देवासी ( देवास की या देवी सदृश ) सोलंकिनी कोई दूसरी ही राजकुमारी है जिसे इन्द्रावती नहीं नाना जा सकता।

इस प्रकार देखते हैं कि कुल मिलाकर पृथ्वीराज के पन्द्रह विवाहों का समाचार राम्रो देता है । परन्तु ये सारे विवाह पृथक रूप से वर्णित नहीं हैं और इनमें से कुछ की सूचना मात्र इसी प्रस्ताव में मिलती है, जिससे इन सबकी वास्तविकता में सन्देह भी होने लगता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जो विवाह अपहरण अथवा कन्या पक्ष के किसी विपक्षी से युद्ध करके उसे पराजित करने के फलस्वरूप हुए हैं कवि ने उन्हीं का विस्तृत वर्णन किया है और उनमें से भी जिनमें अपहरण द्वारा कुमारियों की प्राप्ति हुई है विशेष चात्र से लिखे गये हैं । ऐसे ही स्थलों पर रति-बश उत्साह की प्रेरणा पाकर शृङ्गार और वीर का सामञ्जस्य-विधान देखा जाता है । इन विवाहों के विषय में इतना ध्यान और रखने योग्य है कि कन्या पक्ष की अनुमति से होने वाले पृथ्वीराज के विवाह उनके सामंती घराने से होते हैं; जहाँ कन्या- पक्ष द्वारा अपने किसी शत्रु 'वास हेतु निमंत्रण पाकर युद्ध में उक्त विपक्षी को परास्त करके कुमारी की प्राप्ति होती है वहाँ उक्त पक्ष स्वाभाविक रूप से चिर मैत्री के बन्धन में बँध जाता है और जहाँ किसी राज-कन्या के रूप-गुण से प्रेरित हो उसकी प्राप्ति अपहरण और युद्ध करके होती है वहाँ भी अन्त में उस राज-कल से भविष्य में सहायता के प्रमाण मिलते हैं। इन तीनों प्रकार के विवाहों द्वारा पृथ्वीराज से सम्बन्धित होकर संकटकाल में उन्हें सहायता न देने के दो श्रपवाद हैं-- एक तो काँगड़ा के हाहुलीराय हमीर का जो अन्तिम युद्ध में गोरी के पक्ष में चला गया था और दूसरा कान्यकुब्जेश्वर जयचन्द्र का जो उक्त युद्ध में तटस्थ रहे ।

राज-पुरुषों के बहु विवाहों के पीछे जहाँ कुमारी के प्रति आकर्षण