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और शौर्य-प्रदर्शन का एक निमित्त आदि रहे होंगे वहाँ येनकेनप्रकारेण विवाह- सम्बन्ध से अन्य शासकों की मैत्री का चिर बन्धन और उस पर आधारित सहायता प्राप्ति का अभीष्ट भी प्रेरक रहना सम्भव है । बहु विवाहों वाले उस युग में पूर्व शुरमा पृथ्वीराज के अनेक विवाह न हुए हों यह किञ्चित् याश्चर्य- जनक है। अभी तक उनके विवाह सम्बन्धी कोई शिलालेख नहीं मिले तथा अनेक विरोधी प्रमाण मिले अस्तु इतिहासकारों को रासो वशित विवाहों में से एक भी मान्य नहीं है। समय ६५ में केवल नाम देकर चलते कर दिये गये विवाहों को विवशता पूर्वक छोड़कर हम यहाँ केवल उनमें से कुछ पर क्रमशः विचार करेंगे जिनके सम्बन्ध में पृथक रूप से विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए कवि ने अन्य सूचनायें भी दे रखी हैं ।

रासो में सर्व प्रथम ग्यारह वर्ष की अवस्था में पृथ्वीराज का मंडोवर के परिहार (पड़िहार ) नाहरराव की कन्या से विवाह दिया है ।[१] स० म० माजी ने मंडोवर के पड़िहारों के सन् ८३७ ई० (वि० सं०८६४ ) के शिलालेख[२] के आधार पर बताया है कि नाहरराय पृथ्वीराज से कई सौ वर्ष पूर्व हुए थे। मंडोवर के परिहारों का राज्य सन् ११४३ ई० से पूर्व ही नाड़ेल के चौहानों के हाथ जा चुका था और नाडोल के चौहान सहजपाल के शिलालेख[३] से प्रमाणित है कि पृथ्वीराज के समय वहीं वहाँ का अधिपति था ।

पृथ्वीराज का दूसरा विवाह बारह वर्ष की अवस्था में बू के राजा सलल परमार की पुत्री और जैतराव की बहिन इंच्छिनी से हुआ था ।[४] रासो के अनुसार यह रानी इंच्छिनी ही पृथ्वीराज की पटरानी थी। अमृतलाल शील ने राष्ट्रकूट धवल के सन् ९९६ ई० के शिलालेख के आधार पर बताया है कि पृथ्वीराज से दो सौ वर्ष पूर्व श्राबू या चन्द्रावती का शासक धरणीवराह था जिसने गुजरात के राजा मूलराज सोलंकी ( चालुक्य ) को आधीनता स्वीकार कर ली थी तथा श्राबू के अचलेश्वर के मन्दिर और वस्तुपाल के जैन मन्दिर की सन् १२३० ई०


  1. नाहरराय कथा वर्णनं, सातवाँ समय;
  2. एपिग्राफिया इंडिका, जिल्द १०, ६० ६५-१७;
  3. केरा जिकल सर्वे भाव इंडिया, एन्युअल रिपोर्ट, सन् १६०६-१० ई०, ४० १०२-३
  4. इच्छिनि व्याह कथा, चोह समय ;