पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२२८

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( वि० सं० १२८७ ) की प्रशस्ति[१] में गुर्जरेश्वर कुमारपाल द्वारा सपादल या शाकम्भरी नरेश श्रराज को परास्त करके उनके पक्ष में चले जाने वाले अपने आबू के सामंत विक्रम परमार को गद्दी से उतार कर उसके भतीजे भक्त को वहाँ का अधिपति बनाने का उल्लेख करके, बाबू के जारी गाँव के कुमारपाल की शास्ति सूचक सन् १९४५ ई० ( वि० सं० १२०२ ) के लेख, सिरोही राज्य के कायद्रा ग्राम के उपकण्ठ में काशी विश्वेश्वर के मन्दिर के सन् १९६३ ई० ( वि० सं० १२२० ) के यशोधवल परमार के पुत्र धरावर्ष के शिलालेख[२] और 'ताज-उल-म यासीर उल्लिखित सन् ११६७ ३० ( वि० सं० १२५४ ) में ख़ुसरो अर्थात् कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा अन्हलवाड़ा पर ग्रक्रमण काल में गुजरात के रायकर्ण और वारावर्ष ( परमार ) सामंतों के युद्ध करने का विवरण देकर सिद्ध किया है कि पृथ्वीराज के समय में ग्राबू पर गुर्जरेश्वर द्वारा नियुक्त परमार जातीय सामंतों का आधिपत्य था ।[३] ओझा जी धारावर्ष के चौदह शिलालेखों और एक ताम्र- पत्र का उल्लेख करते हुए इनमें से राजपूताना म्यूजियम में सुरक्षित वि० सं० १२२० ज्येष्ठ सुदि १५[४], वि० सं० १२६५, १२७१ और १२७४५[५] के शिलालेखों के प्रमाण पर पृथ्वीराज के सिंहासनारूढ़ होने के पूर्व से लगाकर उनकी मृत्यु के बहुत पीछे तकाबू पर धाराव (परमार) का ही शासन निश्चित करते हैं, जैत या सलख का नहीं[६] । जो कुछ भी हो प्रधान मंत्री कैनाल का वध कराने वाली, संयोगिता के रूप के कारण सपत्नी द्वेष से राजमहल त्यागने का उपक्रम करने वाली रासो की सुन्दरी, आबू की परमार राजकुमारी और पृथ्वीराज की पटरानी इच्छिनी चरित्र-चित्रण की दृष्टि से चंद काव्य की एक अद्भुत प्रतिमा है, जिसको डॉ दशरथ शर्मा 'कान्हड़ दे प्रबन्ध' के


  1. एपित्राफिया इंडिका, जिल्द ८, पृ० १०८-१३ ;
  2. राजपूताना म्यूज़ियम अजमेर ;
  3. हिस्टारसिटी व दि एपिक, पृथ्वीराज रासो, मार्डन रिव्यू तथा चंदबरदाई का पृथ्वीराज रासो, सरस्वती, मई, सन् १६२६ ई०, पृ० ५५८-६१;
  4. इंडियन ऐन्टीक्वैरी, जिल्द ५६, पृ० ५१;
  5. वही, जिल्द ५६, पृ० ५१ ;
  6. पृथ्वीराज रासो का निर्माणकाल, कोषोत्सव स्मारक संग्रह, सन् १६ २८ ३०, ४०४५-४६