वारावर्ष परमार के छोटे भाई पाहून हे की पुत्री पद्मावती भी अनुमान करते हैं।[१]
रातो के 'विवाह सम्यो ६५' में वर्णत है कि तेरह वर्ष की स्था में पृथ्वीराज ने चामंडराय दाहिम की बहिन से विवाह दिया था। इस विवाह की विस्तृत या सूचना पिछले किती प्रस्ताव में नहीं है। 'मासवच नाम प्रस्ताव ५७' में हम पड़ते हैं कि मानजे रयनकुमार और माना चामंडराय में परस्पर बड़ी प्रीति थी :
दिल्लीवें चहुआन । तर्षे श्रति तेज पत्र बर॥
चंप देस सब सोम । गंजि ग्ररिमिलय चनुदर ॥
रयन कुमर ऋति तेज । रोहि हय॥
साथ राव चाड । करे कलि किसि असंमं॥
मेवास वाल गंजै द्रुगम । नेह नेह बड्दै अनत॥
मातुलह नेह भानेज पर । भागनेय मातुल सुरत ॥१,
और उनकी श्रीति देखकर बंद पुंडीर ने पृथ्वीराज के कान भरे थे ।[२]
'बड़ी लड़ाई रो प्रस्ताव ६६' में पढ़ते हैं कि मुलतान गोरी का प्रबल आक्रमण सुनकर और अपने पक्ष को निर्बल देखकर पृथ्वीराज ने रयनकुमार का राज्याभिषेक कर दिया था :
करिय सुचित भर सव्त्र । राज दिनेव द्रव्य भर॥
मंत्रि मदन श्रृंगार। गज्जबर यह नद्द कर ॥
रयन कुमर श्रभासि । दीन माला मुत्ताहत ॥
ती बंधी निज पानि । बंदि कीनों कोलाहल ॥
चारोहि गज्ज कुम्मार निज । पच्छ बंध सा सिंधु किय॥
जोगिनिय बंदि चहुचान पहु । ऋत्य काज मन्नेव इव ॥ ६०८
'राजा रयन सी नाम प्रस्ताव ६८' में पढ़ते हैं कि पृथ्वीराज को बन्दी करके गोरी द्वारा उन्हें राजनी ले जाने का समाचार पाकर[३], शेष शूर सामंतों नेरयनसी (रैनसी) को राजगद्दी पर बिठाया[४]। चंद की युक्ति ते गोरी को