पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२३

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कवि ने युग के खाद्य पदार्थों पर यथेष्ट प्रकाश डाला है। मुझे से पास प्रारम्भ हुई तथा नाना प्रकार की मिठाइयाँ परोसी जाने लगीं....नाना प्रकार की चबाने योग्य वस्तुयें आई, इसके बाद दरकारियाँ और दूध में बनी हुई भाँति-भाँति के अनेक चीजें परोसी गई,...नाना प्रकार के शक और दालें आई....अंत में थोड़ी क्षुधा शेष रहने पर पछावर की परत प्रारम्भ हुई ।

पूप अनूप पुरूस पुनि, पुरी सुष्यपुरि भैलि ।
ललित लूई त चलै, ऊँच रती बिधि बेलि ।। ७२
भरि पीठि भीतर लोन सिलोध, कचौरिय मेलि चले ढुजराय ।।
घरे निसराज सिवा जनु फेरि, धरे ढिग बदर भाँवर हेरि ||७३
सु तेवर घेवर पैसल पारि, लचे चष फेरि गई उर आगि ।
जलेबनि जेब कहै कवि कौन, महा मधु माठ मिटावन मौन ।।७४, स० ६३

स्त्री-भेद-वर्णन—'काम सूत्र’ और ‘रति मंजरी' आदि में विवेचित काम के आधार पर चार प्रकार के स्त्री भेद-पद्मिनी, चित्रिनी, हस्तिनी, और संखिनी के वर्णन करने का अवसर रास जैसे युद्ध और श्रृंगार काव्य की रचयिता क्यों न पाता। उसके पूर्ववर्तियों ने भी इनके वर्णन किये थे और एक प्रकार से इसे श्रृंगार-काव्य में वर्णन परंपरा का अंग बना दिया था। राजे की ‘पद्मिनी’ देखिये :

कुटिल केस पदमिनी । चक्र हस्तन तन सोभा ।।
स्निग्ध दंत सोभा विसाल । गंध पद्म आलोभा ।।
सुर समूह हेली प्रमांन । निद्रा तुछ जंपै ।।
अलप वाद मित काम । रस्ते अभया भये कंपै ।।।
धीरज छिमा लच्छिन सहज । असन बसन चतुरंग गति ।।
झाबंक लोइ तन्गै सहज । काम बनि भूलंत रहि ।।१२६, स० ६३

घट्ऋतु-बारह सास-वर्णन——रास के ‘देवगिरि समय में वर्षा और शरद का चित्रण है और ये बयान पृथ्वीराज द्वारा यादव कुमारी की प्राप्ति-हेतु-विरह में संचारी रूप में आये हैं। पुरुष-विरह-हेतुक थे बर्णन ऋतु विशेष के स्पष्ट सूचक भी हो सके हैं। पट ऋतुओं और उनमें प्राकृतिक उद्दीप; होने के कारण वियोगियों की व्यथा का प्रभावोत्पादक वर्णन करने का असः कवि ने कनवज्ज खंड' से० ६१ में युक्ति से खोजा है । पृथ्वीराज कन्नौज : के लिए कटिबद्ध हैं परन्तु विपक्षी प्रवल है अस्तु वहाँ से कुशल पूवक नौट आने में शंका है इसलिए वे अपनी पुरानी इच्छिनी से आज्ञी लेने के लिए