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सारे विवाहों की स्थिति रासो की अन्य वाचनानों में भी देखी जानी अति आवश्यक है।

शील जी ने समुद्रशिखरगढ़ की पद्मावती[१], देवगिरि की शशिवृता[२], मालवा की इन्द्रावती[३] और रणथम्भौर की हंसावती[४] के पृथ्वीराज से विवाह


  1. " लेखक ने राढ़ के पालवंशी प्रतापी राजाओं के नाम सुने होंगे और वारेन्द्र भूमि के प्रतापी राजा विजयसेन का नाम सुना होगा, इन दोनों को मिलाकर उसने विजयपाल नाम गढ़ लिया होगा । इस विवाह की कहानी को यदि अधिक ध्यान देकर देखें तो प्रतीत होगा कि रासो के रसिक लेखक ने महाभारत में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण और after के विवाह की कथा का अनुकरण कर यह एक नई कथा गढ़ कर लिख दी है । पृथ्वीराज को श्रीकृष्ण से उपमित कर उनको भी एक अवतार बनाना चाहा। रासो के इस अंश से ऐति- हासिक सत्य संवाद निकालना और महभूमि की बालुकाराशि से विशुद्ध पय उत्पन्न करना किसी गुप्त विद्या से ही संभव हो सकता है।" सरस्वती, सन् १९२६ ई०, भाग २७, संख्या ५, पृ० ५६१-६२ ;
  2. "पृथ्वीराज की यौवनावस्था में नर्मदा से कौंची तक विस्तृत कल्याण राज्य की ईंटें खिसक रही थीं उस समय देवगिरि में वहाँ का एक वेतनभोगी दुर्गपति रहता था । ११८६ ई० के उपरान्त इस दुर्गपति ने कल्याण - राज को दुर्बल देखकर स्वाधीन होने की चेष्टा की । ईसा की तेरहवीं सदी में देवगिरि के यादवों ने पूर्ण गौरव से राज्य किया ! ... रासो में संवत् नहीं लिखा है, तथापि शशिवृता का विवाह सन् १९८६ ई० से पहले ही हुआ होगा ।" सरस्वती, भाग २७, संख्या ६, ० ६७६ ; अस्तु आचार्य द्विवेदी जी के 'संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो' का 'शशिवता विवाह प्रस्ताव' भी द्विविधा में पड़ जाता।
  3. मालवा के लक्ष्मीवर्मा (सन् १९४३ ई० ), हरिश्चन्द्र ( सन् ११७६ ई० ) और उदय वर्मा (सन् १९६६ ई०) के दानपत्रों को देखने पर रासो के ( समय ३३ ) के भीमदेव यादवराय और इन्द्रावती कल्पित पात्र प्रमाणित होते हैं । वही, पृ० ६७७ ;
  4. वि० सं० १५०० रचित हम्मीरमहाकाव्य ( सर्ग ४ ) के आधार पर पृथ्वीराज का पुत्र गोविंदराज ही रणथम्भौर का प्रथम शासक था ।