पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२४३

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था । रूपदीप पिंगल वाले ने भी नीचे लिखा छप्पय का लक्ष्ण कहा है उसमें उसने भी यह कहा है कि इस ग्रंथ के बनाने के समय तक 'छप्पै' का नामांतर 'कवित्त' करके प्रसिद्ध था--

छप्पै

'लघु दीरं नहि नेम । मत्त चौबीस करीजै ॥
ऐसे ही तुक सार। धार तुक चार भरीजै ॥
नाम रसावल होय । और वस्तू कमि जानहु॥
उल्लाला को विरत । फेर तिथि तेरह श्रानहु ॥
है तु बनाव अंत की । यत यत में अठ बीस गहु ॥
सुन गरुड़ पंख पिंगल कहै । छप्पै छंद कवित्त यहु । '

इसके अतिरिक्त कवि कृत 'रघुनाथ रूपक' में भी उसने छप्पै छंदों को कवित्त करके लिखा है ।"

अरिल्ल

च्यारि प्रकार पिषि वन वारन ।
भद्र मंद नग जाति सधारन ॥
पुच्छि चंद कवि को[१] नरपत्तिय ।
सुर वाहन किम इ घरतिय ॥छं ० ४

चंद कवि का उत्तर --

कवित्त

"हेमाचल उपकंठ एक वट वृष्प उतंगं[२]
सौ जोजन परिमानं साप तस भंजि दाहि मतंगं[३]
बहुरि दुरद मद अंघ ढाहि मुनिवर आरामं ।
दीर्घतपा री[४] देषि श्राप दीनो कुपि तामं ॥
अंबर विहार गति मंद[५] हुअ नर आरूढन संग्रहिय ।
संभरि नरिंद्र कवि चंद काह सुर गइंद इम भुवि रहिय ।।छं० ५। रू ०५।

भादार्थ –रू० ४–[ चामंडराय पृथ्वीराज से कहता है-- ] " (उस) वन में भद्र, मंद, मृग और साधारण- ( ये ) चार प्रकार के हाथी देखे जाते हैं ।" ( तब ) नरपति ( पृथ्वीराज ) ने चंद कवि से पूछा कि देवताओं का वाहन पृथ्वी पर किस प्रकार आ गया ।


  1. ना०-को
  2. ना०- उतंग
  3. ना०- मतंग
  4. ए० मो०- तयारी
  5. को० ए० मंड