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जयचंद का 'पंगु' नाम मिलता है जैसे “सैन्यातिश्यात पंगु विरुद धारक: ।" मुनिराज जिनविजय द्वारा संपादित 'प्रबंध - चिन्तामणि' पृष्ठ ११३, छंद २१० में भी जयचंद की महान सैनिक शक्ति का वर्णन मिलता है । 'सूरज प्रकाश के अनुसार जयचंद की सेना में ८०००० सुसज्जित सैनिक, ३०००० जिरह बहतर वाले घोड़े, ३००००० पैदल सैनिक, २००००० धनुधर्र और फरशा- धारी सैनिक तथा सैनिकों सहित असंख्य हाथी थे [Annals and Antiq- uities of Rajasthan, (Crooke ) Vol. II, p. 936। जयचंद की सेना व राज्य विस्तार से तत्कालीन मुसलमान इतिहासकार भी प्रभावित हुए थे।

रू० १३ – अगिनेव <सं० अग्निदेव = दक्षिणी पूर्वी दिशा । दिसा < सं० दिशा । कसि } = कस कर अर्थात् भली भाँति सुसज्जित होकर । सब्ब ८० सर्व सच । भान राज भान । विस्तरी = विस्तार से अर्थात् बड़े दल बल सहित। पडलगढी- लोर्नले महोदय ने अपनी पुस्तक में इसे 'पट्टू दलगढी' पढ़ने के लिये अपनी सम्मति दी है जो अन्य अच्छी सम्मतियों के अभाव में मान्य है । 'दलगढ़' या तो राजा खड्ड के किले का नाम या दलगढ़ [ दल= ( सैनिक ) + गढ़ = ( गढ़ने वाला)] का अर्थ पृथ्वीराज के दल को गढ़ने वाला माना जा सकता है। [“मिल्यो बलगढी नृप" का दूसरा अर्थ खदुलगढ़ का राजा मिला भी हो सकता है ]। नंदिपुर = अयोध्या के समीप इस नाम का स्थान है । पृ० रा० सम्यौ २२ से ज्ञात हुआ कि रघुवंशी राम ने नंदिपुर का विनाश किया था। रेवा इलाहाबाद के दक्षिण रीवाँ राज्य का प्रसिद्ध नगर है । 'देवा नरिन्द' से तत्कालीन रोगों के राजा का अर्थ समझ पड़ता है । अप अपने आप स्वयं। मृग <सं० मृग- हरिण, जानवर । पिल्लई = खेला। [सुरतांन तप= ( तप-ताप, गर्मी ) सुलतान की भयंकर शक्ति ] ह्योर्नले । सुरतांन सुलतान ( गोरी ) । तप < ताप, अर्थात् कष्ट देने वाला । बर कग्गद श्रेष्ठ कागज़ (पत्र) । मिल्लई = मिला । चंद ने लाहौर के शासक चंद-पुडीर द्वारा भेजे गये पत्र को 'वर कागद' इसलिये कहा कि इसमें सुलतान गोरी का हाल था और गोरी चौहान का शत्रु था। शत्रु के रंग ढंग के समाचार लेते रहना सदैव अच्छा है इसीलिये वह 'बर कागद' था।

नोट- रू० १३ - श्री० प्राउज़ महोदय इस कवित्त की प्रथम पंक्ति में आये हुए 'सि' का अर्थ 'कसना' करते हैं । उनके अनुसार 'कमर कसने' से तात्पर्य है "The great king Pirthviraj marches south, gird- ing up his loins.” [Indian Antiquary, Vol. III, p. 340]।