पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२५७

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प्रस्तुत कवित्त में जिस पत्र का हाल है वह पत्र पृथ्वीराज के सेनापति चामँडराय के भाई "चंद पुंडीर ' के पास से श्राया था जो पृथ्वीराज के सीमांत प्रदेश लाहौर का शासक या क्षत्रप था। अगले १८ वें दोहे से यह बात सर्वथा स्पष्ट हो जाती है।

इस पत्र के विषय में दो सम्मतियाँ और मिली हैं- “गुप्त रीति से संतत लाहौर में रहने वाले शहाबुद्दीन के जासूस ने ग़ज़नी को लिख भेजा कि पृथ्वीराज सेना सहित रेवातट पर शिकार खेलने गया है।" रासो सार, पृ० १००।

"The letter was not received from Lahore, but reached the Sultan there and came from Jaychand at Kanauj." [Indian Antiquary. Vol. III, p. 340, F, S. Growse.]।

किंचित् बिचार से पढ़ने पर स्पष्ट हो जावेगा यों कि सम्मतियाँ निराधार हैं। दूत के पत्र का हाल-

दूहा

"ततार मारूफ खां, लिये पांन कर सांहि ।
घर चांनी उप्परै, बजा बजन बाइ ॥ छं० १४ । रू० १४ ।

साटक

श्रोतं भूपय गोरियं वर भरं, बज्जाइ सज्जाइने ।
सा सेना चतुरंग बंधि उललं, तत्तार मारूफयं ॥
तुझी सारस उप्परा बसरसी[१], पल्लानयं षानयं ।
एकं जीव सहाब साहि न नयं, बीयं स्वयं सेनय ॥ छं० १५ । रू० १५ ।

नोट -[चंद पुंडीर के दूत द्वारा लाये गये पत्र का हाल रू० १४ से लेकर रू० १७ तक है ।]

भावार्थ - रू० १४ -"खाँ तातार मारूफ खाँ ने शाह ( गोरी ) के हाथ से पान लिया है। चौहानों को उखाड़ फेंकने के लिये वायु में बाजे ( युद्ध वाद्य ) बज रहे हैं ।

रू० १५— हे राजन्, सुनिये, गोरी के श्रेष्ठ सेनापति तातार मारूफ खाँ ने (ढोल) बजाकर सारी तय्यारी कर ली है और उसकी चतुरंगिणी सेना हम लोगों पर झपटने के लिये प्रस्तुत है। आपके ऊपर भयंकर आक्रमण करने की आकांक्षा सेवानों ने अपने घोड़ों पर जीने कस ली हैं [था आपकी सत्ता


  1. ना० उप्परा बस रसी ।