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कुंडलिया

बर मुसाफ[१] तत्तार पाँ, मरन कित्ति तन[२] बांज ।
में[३] भेजे लाहौर घर, लैहूँ सुनि सु विहान।
लैहूँ[४] सु निसु विहान, सुनै दिल्ली सुरतांनं ।
लुथि पार पुंडीर, भीर परिहै चौहानं[५]
दुचित चित्त जिन करहु, राज आखेट उथापं[६]
गनेस आयरस, चले सब छूय[७] मुसाफ ॥ छं० १७ । रू० १७ ।

भावार्थ- रू १६ - म्लेक्ष [ तातार भारूफ खाँ ] ने ( तुम्हारे विपक्ष में दी हुई अपनी ) सलाह की सत्यता प्रदर्शित करने के लिये हाँथ में पान और सुपारी ली फिर कुरान के वाक्य पढ़े ।

रू० १६ - तातार खाँ ने पवित्र कुरान की शपथ ले कर कहा कि रण का वेश धारण कर फिर मरना क्या ( मरने का क्या डर )। मैं लाहौर नगर को नष्ट कर तथा अधिकृत कर चौबीस घंटे में दिल्ली भी ले लूँगा । हे सुलतान सुनो, पुंडीर की लोथ गिरा कर चौहान पर आक्रमण होगा [ या- मैं लाहौर नगर को नष्ट कर अधिकृत कर लूँगा और सुलतान सुनेगा कि दूसरे दिन मैंने दिल्ली भी ले ली है। पुंडीर की लोथ पार करके चौहान पर क्रमण होगा ]। आप अपने चित्त में किसी प्रकार की शंका न करें (क्योंकि) राजा [ पृथ्वीराज ] श्राखेट खेलने में संलग्न है । ( तब ) शाह गोरी ने ( चढ़ाई बोल देने की ) आज्ञा दी और सब लोग पवित्र पुस्तक [ कुरान ] को छू कर चल दिये ।

सूचना - यहाँ चंद पुंडीर का पत्र समाप्त हो जाता है।

शब्दार्थः - दूहा - १६ - प्रति वेली फल = अहिवेल या नाग सुपारी । हथ्थ<सं० हस्त = हाँथ । तौ = तो 1 बेल का फल तुम्हारे (ऊपर दी हुई सलाह) | मेच्छ = म्लेक्ष ( यहाँ तातार सारूफलों के लिये आया है ) । मसूरति <० सलाह। कुरानी बार=कुरान की (b) इबारत ।

रू० १७-मुसाफ <सं० पुस्तक या पृष्ठ - ( जो धर्म पुस्तक कुरान के लिये प्रयुक्त होता है ।) उन्होंने 'जिहाद' करने के लिये क्रुरान की शपथ ली । [-इस कुंडलिया में दो स्थानों पर मुसाफ आया है । पहिले


  1. ए० सुसाफ
  2. ना० नन; ए० कृ० को०-वन
  3. ना०-मैं
  4. ना० - लैहैं
  5. ना०- चहुप्रानं
  6. ए० - उथानं
  7. ना० ---धूप ।