पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२७

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अवसान में प्रौढ़। नायिका द्वारा खींचा जाता हुशा नायक की बस्त्र । अस्तु राज को रुक जाने के अतिरिक्त और मार्ग न था ।

हेमन्त ऋतु व्यतीत होने पर शिशिर का आगमन हुआ और राजा छठी रानी ( १ ) के महल में उसकी अनुमति लेने गये । वही भला कब छोड़ने वाली थी ! शिशिर का रूप खड़ा करने के साथ उसने मानव-व्यापारों की शरण ली और राजा को रोक लिया——

रोमाली वन नीर निद्ध चरयो, गिरिदंग नाथने ।
पब्वय पीन कुचानि जानि मलथा, फुकार झुकाए ।।
सिसिरे सर्वरि वारून च विरह माहद्द मुव्वारए ।
भांकते भिगबद्ध मध्य गमने, किं दैव उच्चारए ।।६२

इस प्रकार पृथ्वीराज ने घट्-ऋभुये छै रानियों के साथ सवास सुख में व्यतीत की और फिर वसन्त अा गया । कवि ने जिस प्रकार यह ऋतु-वर्णन करने का प्रसंग कौशल पूर्वक हूँढ़ा उसी प्रकार बड़ी नाटकीयता से उसे समाप्त भी किया । ॐ ऋतुओं के बारह मास काम-सुख में बिताकर राजा ने चन्द से पूछा कि हे कवि, वसन्त फिर आ या, वह ऋतु मुझे क्ता जिससे स्त्री को अपना प्रियतम नहीं अच्छी लगता :

घट रिति बारह मास गय् । फिरि अायौ ६ बसंत ॥
सो रिति चंद बताउँ मुहि । तियान भावे कंत ।। ७३

चंद ने स्त्री के पति-अम की महिमा बखानते हुए ऋतु' शब्द पर श्लेष करके उत्तर दिया :

जौ नलिनी नीरह तनै । सेस तजै सुरतंत ।।
जौ सुबास मधुकर तनै । तौ तिय त सु कैत ।। ७४
रोस भरै उर कामिनी । होई मलिन्द सिर अंग ।।
उहि रिति त्रिया न भवई । सुनि चुहान चतुरंग ।। ७५

कथा के इस प्रसंग में घट-ऋतुओं का रोचक वर्णन पढ़ने को मिलता है । बृद्यपि उद्दीपन को लेकर ही इसकी रचना हुई है परन्तु यह रासोकार के‌ ऋतु विषयक ज्ञान, प्रकृति-निरीक्षण, मानवी-व्यापारों की अनुरंजना श्रौर वर्णन-‌कौशल का परिचायक है। संदेश रासक' की विरह-विधुरा प्रौप्रतिपतिका क; ऋतु-विरह-वर्णन, बस्तु-वर्णन’ को प्रसंग न होकर विरह-संदेश-पूर्ण प्रधान-कथा-‌नक था और वहाँ कवि अहमण (अब्दुल रहमान) ने ऋतुओं का सांगोपांग वर्णन किया है। रासकार की न तो वैसी योजना थी और न वैसा कथानक