पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२८

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ही फिर भी उसे यथेष्ट सफलता प्राप्त हुई है । रासो को प्रस्तुत ऋतु-वर्णन सूफी कवि जायसी के पदमावत के टू-ऋतु-वर्णन और नागमती-वियोग-खंड के वर्णन के समान ईश्वर से मिलन और वियोग की प्रतीकता का मिस नहीं, भक तुलसी के मनिस के किष्किथाकाण्ड की बर्षा और शरद के वर्णन की भाँति नीति और भक्ति अदि का उपदेशक नहीं, राठौर नरेश पृथ्वीराज के खंड-काव्य ‘वेलि क्रिसन रूकमणी री' के ऋतु-वर्णन सदृश गहरा और व्यापक नहीं तथा सेनापति के स्वतंत्र ऋतु-बर्णन की तरह अलंकारों से ओझिल, उखड़ा हुआ। और रूखा नहीं फिर भी उसमें अपना ढंग और अपना आक ईश है तथा मुख्य-कथानक से उसे जोड़ने का कवि-चातुर्य परम सराहनीय है ।

नख-शिख और श्रृंगार वर्णन–इनके बारह प्रसंग हैं जिनमें से अधिकांश में पृथ्वीराज से विवाहित होने वाली राजकुमारियों का सौंदर्य वर्णित है । देवगिरि की यादव कुमारी शशिवृता का सौंदर्य-वर्णन कवि की पैठ का परिचय देते हुए उसके सरस हृदय का पता देने वाला है तथा सबसे विस्तृत शौर विशद नख-शिल कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता का है। इस प्रकरणों में स्नान से वर्णन प्रारम्भ करके, केश धोने, उबटन लगाने, वेणी गूथने, मोती बाँधने, बिंदी देने तथा विभिन्न भूषण धारण करने के साथ-साथ नख-शिख वर्णन भी मिश्रित है। कहीं एक छप्पय छंद में ही सारा नख-शिख दे दिया गया हैं :

चंद वदन चष कमल । भौंह जनु अमर गंध रत ।।
कीर नास बिंबोछ । दसन दामिनी दमकत ।।
भुज भनाल कुच कोक । सिंह लंकी गति बान ।।।
कनक कति दुति देइ । जंव केदली दल अरुन ।।
अलसंग नयन मयनं मुदित । उदित अनंगह अंग लिहि ।।
अनी सुमंत्र अरिंभ बर | देते थूलत देव जिहि ॥२४६, स० १२

और कहीं विस्तृत रूप में है। प्रसिद्ध उपमानों के अतिरिक्त नवीन सफल और असफल उपमानों की भी योजना है। इन वर्गलों में चमत्कारिक रूपकों का समावेश भी मिलता है।

समुद्र-मंथन से निकले हुए चौदह-रत्नों का आरोप संयोगिता के अवययों पर करके कवि ने अपनी मौलिक सूझ-बूझ की छाप लगाई है। संयोगिता का रूप (अप्सरा ) रंभा के समान है, गुण लक्ष्मी के समान और वचन अमृत सदृश ( मधुर तथा जीवन दाता ) हैं, उसकी लज्जा' विष-तुल्य हैं, उसके अंगों की सुगन्धि पारिजात का बोध कराती है, उसकी ग्रीवा (पांचजन्य) शॉल