पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२७६

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(दे० Plate No. III,। चमर = चँवर ( यहाँ कलंगी से तात्पर्य है )। जोति= चमकती हुई। पवन <सं० पवन वायु। रुनं = बजना । ग्रह ग्रह = आठ ग्रह। सतारक = तारक मंडल सहित। पीत परोपीले रंग की पाग। उर हृदय, वक्षस्थल। भांन=चमकना । विट= वैशिक नायक; कामतंत्र की कला में निपुण नायक का सहायक सखा। कुलटा = दुराचारिणी स्त्री। मुष <मुख। कठिन=काढ़ना, खींचना। घूंघट = यहाँ घोड़ों की झालर से तात्पर्य है। रसु < सं० अश्व। बली = बलवान। कुलबद्ध = कुल बधुयें। बरनं < वर्णन। धनं अधिक। पुजै = बराबरी। न न नहीं। बग्ग पवन < वर्ग प्लवन (यहाँ घोड़ों 'की सरपट चाल से तात्पर्य है)। याग <सं० वर्ग समुदाय समूह। मनं मन।

कुंडलिया

नव बज्जी घरियार घर, राजमहल उटि जाइ ।
निसा अद्ध बर उत्तरे, दूत संपते आइ ॥
दूत संपते आइ, धाइ चहुन सुजग्गिय।
सिंह बि मुकि, साहि साही उर तग्गिय ॥
अट्ठ सहस्र गजराज, लष्ष अट्ठारसु[१] ताजिय[२]
उसै सत्त बर कोस, साहि गोरी नव बाजिय ॥छं० ३७ ।रू० ३३ ।

दूहा

बँचि कागद चहुआनं, फिर न चंद सह[३] थांन।
मनवीर तनु अंकुर, मुगति भोग बनि प्रांन ॥ छं० ३८ । रू० ३४ ।

दूहा

मची दल हिंदु कै, कसैं[४] सनाह सनाह ।
बर चिराक दस सहस" भइ[५],बजि निसांन अरि दाह ॥छं० ३६।रू० ३५।

भावार्थ - रू०३३ - पर में बढ़ियाल ने (रात्रि के) नौ बजाये (और पृथ्वीराज ) उठकर राजमहल में गये । जब श्रद्ध रात्रि भली भाँति बीत चुकी थी तब अचानक एक दूत ने आकर शीघ्र चौहान के पास पहुँच उन्हें जगाकर कहा कि अब सिंहों के साथ छेड़छाड़ छोड़ कर शहंशाह गोरी की ओर ध्यान दीजिये। आठ हजार हाथी और अठारह लाख घोड़े लिये हुए गोरी नौ बजे चौदह कोस की दूरी पर देखा गया है।


  1. ना०-- अट्ठारह
  2. ए० कृ० को राजिय
  3. क्रू० - सर क्रू० - सर
  4. ए० कृ० करै सनाह सनाह
  5. ए० कृ० को ० दस-दस ;